Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन - ९३ २०९ बनाना होगा। हाँ, बुद्धि को निपुण बनाया जा सकता है। बुद्धि के चार प्रकार बताये गये हैं। इन प्रकारों में दो प्रकार हैं सहज-स्वाभाविक बुद्धि के और दो प्रकार हैं प्रयत्नसाध्य बुद्धि के । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार प्रकार की बुद्धि : १. औत्पत्तिकी, २. वैनयिकी, ३. कर्मजा और ४. पारिणामिकी। ये हैं बुद्धि के चार प्रकार | औत्पत्तिकी और पारिणामिकी- दो प्रकार की बुद्धि जिस मनुष्य को होती है, स्वाभाविक होती है । मतिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होता है। वैनयिकी और कर्मजा बुद्धि प्रयत्न से प्राप्त हो सकती है। हालाँकि क्षयोपशम तो मूलभूत कारण है ही, परन्तु क्षयोपशम के लिए भी प्रयत्न तो चाहिएगा ही! यदि मनुष्य में बुद्धि नहीं है, यानी बुद्धि का प्रकर्ष नहीं है, और मनुष्य चाहता है बुद्धि का प्रकर्ष, तो उसको गुरुसेवा करनी चाहिए। गुरु का विनय करना चाहिए। विनय-विवेकपूर्ण सेवा करनी चाहिए। दीर्घकालपर्यंत सेवा करनी चाहिए । एक बात याद रखना कि यह कोई 'इंस्टन्ट' ट्रीटमेंट नहीं है कि सरदर्द हुआ, 'डिस्प्रिन' की गोली ले ली और एक-दो घंटे के बाद आराम हो गया! वैसे, हमने गुरुसेवा की और कल हम बुद्धिमान् हो जायें! जब तक आप बुद्धिमान् नहीं बनो तब तक बुद्धिनिधान ऐसे गुरुदेवों की बुद्धि के अनुसार जीवन जीते रहो। यानी गुरु आज्ञा के अनुसार जीवन-य - यापन करने का । आज सरल और निष्कपट हृदय से गुरुसेवा करनी चाहिए। वह भी सेवा जैसे तैसे गुरु की नहीं, बुद्धि के प्रकर्ष वाले, बुद्धिनिधान गुरु की सेवा करनी चाहिए। गुरुसेवा से जो बुद्धि प्राप्त होगी वह वैनयिकी बुद्धि कहलायेगी । इसी ग्रंथकार महर्षि ने 'उपदेशपद' ग्रंथ में कहा है : भत्ती बुद्धिमंताण तहय बहुमाणओय एएसिं । अपओसयसंसाओ एयाण वि कारणं जाण ।। १६२ ।। बुद्धि का प्रकर्ष प्राप्त करने के लिए, बुद्धि को निपुण बनाने के लिए तीन उपाय बताये गये हैं : १. बुद्धिमानों की भक्ति, २. बुद्धिमानों का बहुमान, ३. बुद्धिमानों की ईर्ष्यारहित प्रशंसा । For Private And Personal Use Only

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