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प्रवचन-९३
० तथाभव्यता के परिपाक से पुण्यानुबंधी पुण्य बंधता है, ० पुण्यानुबंधी पुण्य के उदय से कल्याणमित्र का योग मिलता है, ० कल्याणमित्र का योग मिलने से बुद्धि की निपुणता के उपाय मिलते हैं,
० बुद्धि के नैपुण्य से सूत्रानुसारी प्रवृत्ति होती है, धर्म, अर्थ और कामतीनों पुरुषार्थ में विवेक एवं औचित्य आता है। जीवन में कोई अनुचित प्रवृत्ति नहीं होती है। जो भी प्रवृत्ति होगी वह उचित प्रवृत्ति होगी। 'उपदेशपद' ग्रंथ में ग्रंथकार आचार्यदेव कहते हैं :
बुद्धिजुओ आलोयइ धम्मठ्ठाणं उवाहिपरिसुद्धम् ।
जोगत्तमप्पणोच्चिय अणुबंधं चेव जत्तेण ।।१६७ ।। बुद्धिमान् मनुष्य दोषरहित धर्मस्थानों का विचार करता है। धर्मस्थान यानी सम्यग् ज्ञान की आराधना, सम्यक चारित्र की आराधना सम्यक् तपश्चर्या की आराधना....वगैरह आराधनाओं के विषय में वह सोचता है। बुद्धिमान् मनुष्य अवश्य सोचेगा। वह कैसे सोचता है वह भी बताता हूँसोचने की बातें :
अभी वर्तमान समय में मुझे कौन-सी धर्माराधना करनी चाहिए? यानी वर्तमान संयोगों में मैं कौन-सी धर्माराधना कर सकता हूँ? मुझे आठ दिन के पौषध करने हैं और आठ दिन उपवास करने हैं, क्या मैं कर सकता हूँ? क्षेत्र अनुकूल है? मेरा शरीर उपयुक्त है? मेरे पारिवारिक कर्तव्यों में बाधा नहीं पहुँचेगी न? मैं आठ दिन घर में नहीं रहूँगा। परंतु घर को संभालनेवाला मेरा भाई है....। मेरा शरीर भी तपश्चर्या के लिए उपयुक्त है। पौषधव्रत में मेरे साथ दूसरे भी साधर्मिक भाई रहेंगे। इससे आपस का साधर्मिक प्रेम बढ़ेगा।
बुद्धिमान् मनुष्य काल (समय) का विचार करेगा, अपने मित्रों का विचार करेगा, अपने देश का विचार करेगा, आय और व्यय का विचार करेगा, अपनी शक्ति का भी गंभीरता से विचार करेगा। ___ गंभीरता से सोच कर ही वह कार्य का प्रारंभ करेगा। जो भी कार्य वह करेगा, उसका प्रारंभ बहुत अच्छे ढंग से करेगा। समाज में हास्यास्पद नहीं होना पड़े, कार्य की सफलता प्राप्त हो - उस द्रष्टि से वह कार्य करेगा। नगर के लोग उसके कार्य की प्रशंसा करें, समाज में उसकी इज्जत बढ़े, उस ढंग से वह कार्य करेगा। एक कहावत है न कि 'जिसका प्रारंभ अच्छा उसका अन्त
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