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प्रवचन-९३ ज्ञान को गहरा बनाना जरूरी है : ___ एक उपाध्याय थे। उनके दो शिष्य थे। दोनों को उपाध्याय ने निमित्तशास्त्र का अध्ययन करवाया। एक दिन वे दोनों छात्र लकड़ी काटकर लाने के लिए जंगल में गये। लकड़ियाँ काटकर, गट्ठर बाँधकर दोनों वापस लौटते हैं। नदी में पानी पी कर, एक वृक्ष की छाया में विश्राम करने बैठे। इतने में एक स्त्री पानी का घड़ा लेकर वहाँ से निकली, उसने इन दोनों छात्रों को देखा। वह स्त्री जानती थी कि ये विद्वान् छात्र हैं। उसने आकर विनय से प्रश्न किया : 'मेरा प्रिय पुत्र कई वर्षों से परदेश गया है। अभी वह वापस नहीं आया है। कृपा कर के बताइये कि वह कब घर आयेगा।' उस स्त्री ने प्रश्न पूछा ही था कि उसके हाथ में से पानी का घड़ा जमीन पर गिर गया
और फूट गया। यह देखकर एक छात्र ने कहा : 'तेरा पुत्र मर गया है।' दूसरे छात्र ने कहा : 'हे माता, तू तेरे घर पर जा, तेरा पुत्र घर पर आ गया है।' वह स्त्री घर पर गई तो उसने अपने पुत्र को घर पर आया हुआ देखा। वह बड़ी संतुष्ट हुई। दो वस्त्र और कुछ रुपये लेकर वह तुरन्त उन छात्रों के पास गई। जिसने सही भविष्यकथन किया था, उसको वस्त्र और रुपये दिये और बहुत-बहुत प्रशंसा की।
दोनों शिष्य आश्रम में गये। जिसका भविष्यकथन गलत सिद्ध हुआ था उसने जाकर उपाध्याय को उपालंभ देते हुए कहा : 'मैं आपकी भक्ति करता हूँ फिर भी आपने निमित्तशास्त्र का रहस्य इसको बताया, मुझे क्यों नहीं बताया?'
उपाध्याय ने 'क्या हुआ?' पूछा। छात्रों ने समग्र घटना सुनायी। उपाध्याय ने पूछा : 'उस औरत का लड़का मर गया है, ऐसा तूने किस आधार से बताया?' उस छात्र ने कहा : 'उसने प्रश्न पूछा और तुरन्त ही उसका घड़ा फूट गया, यह देख कर मैंने कहा कि तेरा पुत्र मर गया है।'
दूसरे शिष्य से पूछा : 'तूने कैसे कहा कि तेरा पुत्र घर पर आ गया है।' शिष्य ने विनयपूर्वक कहा : 'गुरुदेव, मैंने शास्त्रानुसार सोचा कि घड़ा मिट्टी में से पैदा हुआ है और मिट्टी में मिल गया, वैसे लड़का माँ से उत्पन्न हुआ है, माता को मिल गया है। यह सोच कर मैंने उस महिला को कहा कि तेरा पुत्र घर पर आ गया है।'
उपाध्याय ने अविनीत शिष्य से कहा : 'निमित्तशास्त्र तो मैंने तुम दोनों को
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