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प्रवचन-९३
२१३ पढ़ाया है समान रूप से, परंतु तेरी जड़ बुद्धि के कारण तू रहस्य नहीं पा सका है, मेरा कोई दोष नहीं है।' संपर्क में सतर्कता रखो :
निपुण प्रज्ञा के बिना शास्त्र के रहस्य प्राप्त नहीं हो सकते हैं। निपुण प्रज्ञा गुरुविनय से प्राप्त होती है। एकाग्रता से अध्ययन करते रहने से निपुण प्रज्ञा प्राप्त होती है। पुनः-पुनः विचारपूर्वक अभ्यास करने से, कार्य करने से निपुण प्रज्ञा प्राप्त होती है। ___ मूर्ख मनुष्यों के संसर्ग में रहोगे तो बुद्धि का विकास नहीं होगा। कामी, क्रोधी, लोभी.... मायावी लोगों के संसर्ग में रहने से बुद्धि का नाश होता है। इसलिए ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि कल्याणमित्रों का संपर्क रखो। कौन कल्याणमित्र हो सकता है, जानते हो न? जो श्रद्धावान हो, ज्ञानवान् हो और चरित्रवान् हो, वह ही कल्याणमित्र हो सकता है। ___ जिसमें मैत्रीभावना हो, करुणाभावना हो, प्रमोदभावना हो और माध्यस्थभावना हो, वह महापुरुष ही कल्याणमित्र हो सकता है।
सभा में से : ऐसे कल्याणमित्र कहाँ मिलेंगे? साधुभगवंत तो आते-जाते हैं! निरंतर संपर्क बना रहे, वैसे कल्याणमित्र मिलने मुश्किल हैं! तथाभव्यत्व की परिपक्वता के साधन :
महाराजश्री : सही बात है आपकी । पुण्यकर्म के उदय से ही कल्याणमित्र का संयोग मिलता है। 'पुण्यानुबंधी पुण्यकर्म' का उदय होना चाहिए। ऐसे पुण्यकर्म के उदय के बिना कल्याणमित्र का योग नहीं मिलता है और, तथाभव्यत्व का परिपाक हुए बिना ऐसा पुण्योदय नहीं मिलता। 'तथाभव्यत्व' तो प्रत्येक मोक्षगामी जीव में होता ही है। परन्तु उसको 'परिपाक' करना पड़ता है। परिपाक का पुरुषार्थ किये बिना 'तथाभव्यत्व' का विशेष कोई महत्त्व नहीं है। 'तथाभव्यत्व' एक प्रकार की योग्यता है, मोक्ष पाने की योग्यता है। योग्यता होने मात्र से क्या? योग्यता का लाभ प्राप्त करना चाहिए। 'तथाभव्यता' का परिपाक करने के लिए प्रतिदिन सुबह, मध्याह्न और शाम - तीनों समय १. चार शरण अंगीकार करते रहें, २. दुष्कृत्यों की आत्मसाक्षी से गर्दा करते रहें और ३. सुकृतों की अनुमोदना करते रहें। इससे तथाभव्यत्व का परिपाक होगा।
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