Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९२ २०३ एक मुसाफिर है | पदयात्रा करता है । ग्रीष्मकाल है | पंथ लंबा है । मुसाफिर थक जाता है, प्यास भी जोरों की लगी है। उसके पास पानी नहीं है। वह एक नदी के पास पहुँचता है। नदी में भी पानी नहीं है। वह सोचता है : 'नदी का पट है, इसलिए पानी तो भीतर में होना ही चाहिए | मुझे खड्डा खोदना पड़ेगा। हालाँकि मैं थक गया हूँ....खड्डा खोदने से थकान बढ़ेगी, परंतु क्या करूँ? दूसरा कोई उपाय नहीं है पानी पीने का | थकान लगे तो लगे, कपड़े बिगड़े तो बिगड़े.... परन्तु मैं खड्डा तो खोदूँगा ही। पानी मिलने पर थकान भी उतर जायेगी और कपड़े भी साफ हो सकेंगे।' मुसाफिर खड्डा खोदता है, पानी मिलता है, पेट भर के पीता है और विश्राम करता है। कपड़े भी धोकर साफ कर देता है। यह उपनय-कथा है। आप लोग संसार के मुसाफिर हो । संसार की आधिव्याधि-उपाधि से संतप्त हो । चार गतियों के परिभ्रमण से थके हुए हो। आपको पुण्य की प्यास लगी है। आपको मंदिर बनाना पड़ेगा, परमात्मा की मूर्ति बनानी पड़ेगी, परमात्मा का पूजन करना पड़ेगा, इससे स्वरूपहिंसा होगी और पापकर्म का बंधन भी कुछ होगा! परंतु क्या करोगे? यह तो करना ही पड़ेगा! परन्तु चिन्ता नहीं करना । प्रभुदर्शन से, प्रभुपूजन से और प्रभु-स्तवना से जो शुभ भावों का पानी मिलेगा, उस पानी से वे बंधे हुए पापकर्म धुल जायेंगे। पापों की थकान दूर हो जायेगी। मुक्ति की ओर आपकी यात्रा आगे बढ़ेगी। मन ही मुख्य कारण है : एक बात याद रखना : कर्मबंध या कर्मक्षय का मुख्य आधार अपने मन के अध्यवसाय हैं। मन के अध्यवसाय अशुद्ध होंगे तो कर्मबंध होगा, मन के अध्यवसाय शुद्ध होंगे तो कर्मक्षय होगा। क्रिया हिंसा की है परंतु मन के अध्यवसाय प्रभुभक्ति के हैं अथवा गुरुभक्ति के हैं तो वह हिंसा हिंसा नहीं है। क्रिया अहिंसा की है परंतु मन के अध्यवसाय अशुभ हैं, अशुद्ध हैं तो वह अहिंसा अहिंसा नहीं है। इसलिए डरे बिना परमात्मा के मंदिर बनायें और घबराये बिना परमात्मा की पूजा भी करें | चूँकि स्वरूपहिंसा से जो पाप लगेंगे वे पाप 'वोशेबल' (Washable) होंगे! परमात्मभक्ति के शुभ भाव से वे पाप धुल जायेंगे। ___'अहिंसा' के विषय में अपन ने इतना चिन्तन किया! अब कोई शंका हो तो दूर करनी चाहिए | कोई विपरीत बोध हो अपना, तो दूर करना चाहिए | For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259