Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९२ २०२ नया प्रश्न मन में उठता है : किसी जीव को मारने की इच्छा नहीं हो, परन्तु ऐसी क्रिया करनी पड़ती है कि जिस क्रिया में जीव मरते ही हैं, तो क्या वह 'हिंसा' है? परमात्मपूजन करने के लिए गृहस्थ को स्नान करना पड़ता है, उसमें पानी के जीव मरते हैं। मंदिर बनाना होता है, उपाश्रय या स्थानक बनाना होता है, तो उसमें पृथ्वीकाय के, पानी के जीव तो मरते ही हैं, त्रसकाय के जीवों की भी हिंसा होती है। तीर्थयात्रा करने जाते हैं अथवा गुरुवंदन करने जाते हैं, तो भी जीव मरते हैं.....। तो क्या करना चाहिए? हिंसा के प्रकार : उत्तर मिलता है : तीर्थंकर भगवान ने हिंसा दो प्रकार की बतायी है : हेतुहिंसा और स्वरूपहिंसा । प्रमाद से जो हिंसा होती है यानी विषय-कषाय से जो हिंसा होती है वह हेतुहिंसा है। चूंकि वहाँ दूसरे जीवों को मारने की वृत्ति होती है, इरादातन मारने की क्रिया होती है, इसलिए हेतुहिंसा वर्ण्य है। परन्तु जिस क्रिया में जीवों को मारने की वृत्ति नहीं होती है, आशय जीववध का नहीं होता है, आशय होता है शुभ कार्य करने का और जीवों की हिंसा होती है, उसको स्वरूपहिंसा कहते हैं। गृहस्थ जीवन में आप स्वरूपहिंसा का त्याग नहीं कर पायेंगे। स्वरूपहिंसा का भी त्याग करना है तो आपको श्रमणजीवनसाधुजीवन स्वीकार करना पड़ेगा। साधुजीवन में स्वरूपहिंसा भी नहीं होती है। हेतुहिंसा तो साधुजीवन में संभवित ही नहीं है। इस बात पर एक और नया प्रश्न उठता है : गृहस्थ को स्वरूपहिंसा से भी कर्मबंध-पापकर्मों का बंध होता है न? भले गृहस्थ मंदिर बनवाता हो, उपाश्रय बनवाता हो, स्थानक बनवाता हो या कोई भवन बनवाता है, उसमें जो हिंसा होती है जीवों की, इससे पापकर्म तो बंधेगे ही? हिंसा है लेकिन : इस प्रश्न का उत्तर मिलता है : जितने अंश में हिंसा होती है, उतने अंश में पापकर्म का बंध अवश्य होता है, परंतु वह कर्मबंध प्रगाढ़ नहीं होता है, निकाचित नहीं होता है। वह कर्मबंध कच्चे रंग जैसा होता है। जैसे कच्चा रंग धोने से निकल जाता है वैसे, स्वरूपहिंसा से जो कर्मबंध होता है वह कर्मबंध शुभ अध्यवसायों के पानी से धुल जाता है! परमात्मभक्ति का भाव, गुरुभक्ति का भाव, साधर्मिक भक्ति का भाव, गरीबों के उद्धार का भाव... ये सारे भाव पापकर्मों को धोने के लिए पानी जैसे हैं! For Private And Personal Use Only

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