Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 206
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ प्रवचन-९२ 'मुझे बुद्धिमान् होना है,' ऐसा निश्चय तो होना ही चाहिए। जैसे दुनिया में बुद्धि के बिना सुचारु रूप से कार्य नहीं होता है वैसे धर्मक्षेत्र में भी बुद्धि के बिना सूक्ष्म तत्त्वों का बोध नहीं हो सकता है। मोक्षमार्ग की आराधना जैसे करनी चाहिए वैसी नहीं हो सकती है। सरलता सुधारती है : एक आचार्य थे। उनके कुछ शिष्य बुद्धिमान् नहीं थे। इसलिए आचार्य उनको हमेशा मार्गदर्शन देते रहते थे। एक बार, वे शिष्य जंगल में गये, वापस लौटने में देरी हुई। जब वे आये, आचार्य ने पूछा : 'आज इतनी देरी क्यों हुई?' शिष्य बुद्धिमान् नहीं थे परन्तु सरल जरूर थे। उन्होंने कहा : 'गुरुदेव, जब हम जंगल से लौटे, नगर के बाहर कुछ नट तमाशा करते थे, हम तमाशा देखने खड़े रह गये, इसलिए यहाँ आने में देरी हो गई।' __ आचार्य ने कहा : 'महानुभावों, साधु को नट नाचते हों, वहाँ खड़ा नहीं रहना चाहिए, तमाशा नहीं देखना चाहिए।' शिष्यों ने कहा : 'गुरुदेव, हमारी गलती हुई, क्षमा करें, फिर से ऐसी गलती नहीं करेंगे।' कुछ दिन बीते। दूसरी बार उन शिष्यों को जंगल से आने में देरी हुई। आचार्य ने पूछा : 'आज देरी कैसे हुई?' शिष्यों ने कहा : 'गुरुदेव, हम जंगल से वापस लौट रहे थे, नगर के बाहर कुछ नटियाँ नाच रही थीं, हम देखने के लिए वहाँ खड़े रह गए | इसलिए यहाँ पहुँचने में देरी हो गई।' __ आचार्य को गुस्सा नहीं आया। वे जानते थे कि 'ये साधु बुद्धिमान नहीं हैं। जब मैंने उनको नटों का नृत्य देखने का निषेध किया था तब ये नहीं समझ पाये थे कि नटियों का नृत्य भी नहीं देखना चाहिए।' जो दृश्य राग या द्वेष की वासना पैदा करे, वैसा दृश्य नहीं देखना चाहिए,' यह बात ये नहीं समझ पाये। वे इतना ही समझे कि 'नटों का नृत्य नहीं देखना चाहिए!' उन्होंने वात्सल्य से उन शिष्यों को बोध दिया। वे विनीत थे, सरल थे, इसलिए आचार्य की बात मान ली। यदि वे विनीत नहीं होते, सरल नहीं होते तो आचार्य की बात मानते क्या? आचार्य से क्षमा मांगते क्या? क्षमा तो नहीं मांगते, आचार्य की गलती बताते! जो बुद्धिमान नहीं होते हैं और सरल नहीं होते हैं, वे अपनी गलती जल्दी स्वीकार नहीं करेंगे। वे लोग अपनी बात को सिद्ध करने का प्रयत्न करते रहेंगे। यदि वे शिष्य विनीत और सरल नहीं होते तो कहते : 'गुरुदेव, जिस समय आपने नाचते हुए नटों को नहीं देखने की For Private And Personal Use Only

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