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प्रवचन-९१ बुद्धिमान् एवं बुद्धिमत्ता का भेद : ___ एक मनुष्य अपनी बुद्धि से किसी को मारने की योजना बनाता है, दूसरा मनुष्य किसी मरते हुए को बचाने का उपाय सोचता है। दोनों की बुद्धि में फर्क है | मारने की योजना बनानेवाला बुद्धिमान् हो सकता है, परन्तु उसमें बुद्धिमत्ता नहीं कहलायेगी। जब कि दूसरा मनुष्य बुद्धिमत्तावाला कहलायेगा।
वैसे, परस्त्री का अपहरण करनेवाला बुद्धिमान् हो सकता है, परन्तु बुद्धिमत्तावाला नहीं कहलायेगा। दूसरों का धन-माल लूटनेवाला भी बुद्धिमान् हो सकता है, परन्तु बुद्धिमत्तावाला नहीं।
सद्गृहस्थ में बुद्धिमत्ता होनी चाहिए | बुद्धिमत्ता, किसी मनुष्य में स्वाभाविक रूप से होती है तो किसी को प्रयत्न से संपादन करनी पड़ती है। प्रस्तुत गृहस्थ धर्म में बुद्धि के जो आठ गुण बताये हैं, वे आठ गुण तत्त्वनिर्णय की दृष्टि से बताये गये हैं।
हालाँकि, यहाँ पर बताये हुए आठ गुणोंवाली बुद्धि ही बुद्धिमत्ता की जननी हो सकती है, इसलिए पहले मैं आपको बुद्धि के आठ गुण बताऊँगा। पहले नाम बता देता हूँ : १. सुश्रूषा
५. विज्ञान २. श्रवण
६. ऊह ३. ग्रहण
७. अपोह ४. धारण
८. तत्त्वाभिनिवेश अब, एक-एक का विवेचन करता चलूँगा, ध्यान से सुनना, मेरी ओर ही देखना। इधर-उधर मत देखना। ___ पहला गुण है सुश्रूषा| सुनने की इच्छा यानी सुश्रूषा | इच्छा होना, बुद्धि का-मन का कार्य है। मन को यहाँ बुद्धि के नाम से समझना है। चूंकि तत्त्वबोध से प्रस्तुत में मतलब है। जो बोध कराये उसका नाम बुद्धि! बुद्ध-प्रबुद्ध व्यक्ति से बोध प्राप्त होता है। ऐसे प्रबुद्ध व्यक्ति के पास जाकर, 'मैं तत्त्वबोध प्राप्त करूँ,' ऐसी इच्छा पैदा होनी चाहिए।
सभा में से : इस प्रकार बुद्धि का पहला गुण हम लोगों में तो है न!
महाराजश्री : हाँ, आप लोग यदि यहाँ तत्त्वबोध पाने की इच्छा से, प्रवचन सुनने की इच्छा से आते हो तो बुद्धि का पहला गुण है आप लोगों में। और
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