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प्रवचन-९१ एकाग्र मन से सुन रहे हो तो दूसरा गुण भी है आप लोगों में | बुद्धि का दूसरा गुण है श्रवण, श्रवण यानी सुनना । तन्मय होकर सुनना! जहाँ सुनने की इच्छा से सुना जाता है वहाँ तन्मयता आ ही जाती है। जिज्ञासा ज्ञान की जननी है :
आत्मज्ञान, तत्त्वज्ञान या पदार्थज्ञान पाने की... सुनने की इच्छा पैदा होना भी बड़ी बात है! जो लोग मोहग्रस्त होते हैं, यानी जिन लोगों का मन मोहाक्रान्त होता है या द्वेषाक्रान्त होता है वे लोग तत्त्वश्रवण के प्रति रुचिवाले नहीं होते हैं। भोगासक्त और अर्थलोलुप मनुष्य की बुद्धि में तत्त्वश्रवण की इच्छा पैदा नहीं हो सकती है। ऐसे लोगों की दृष्टि अर्थ और काम (विषयोपभोग) में ही लगी रहती है। सुविधा और सुंदरता की ललक बनी रहती है। अर्थोपार्जन की बातों में ही उसकी बुद्धि लगी रहती है। ज्ञानप्राप्ति की इच्छा कैसे पैदा हो सकती है? वर्तमान युग में देखा जाय तो तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में तो नहीं, व्यावहारिक-क्षेत्र में ज्ञानप्राप्ति की इच्छा लोगों में बहुत कम पायी जाती है। तत्त्वज्ञान पाने की इच्छा तो बहुत थोड़े लोगों में पायी जाती है।
तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में मूल बात है तत्त्वजिज्ञासा । तत्त्वश्रवण की इच्छा पैदा होनी चाहिए | आत्मा, कर्म, परलोक, विश्वव्यवस्था, द्रव्य-गुण-पर्याय, उत्पत्तिस्थिति-लय... इत्यादि तत्त्वों को जानने की इच्छा आप लोगों को होती है?
और, यदि प्रवचनों में ऐसी तत्त्वज्ञान की बातें कहना शुरू कर दूँ तो? ___ सभा में से : हम लोगों को तो सरल और कहानीप्रचुर प्रवचन ही पसंद आते हैं। तत्त्वज्ञान की बातें बहुत कम लोगों की समझ में आती हैं। विदेशी ने ४५ आगम पर शोधप्रबंध लिखा! __ महाराजश्री : मेरी बात है जिज्ञासा की। तत्त्वज्ञान पाने की जिज्ञासा है क्या? जिज्ञासावाला मनुष्य तत्त्वज्ञान का श्रवण करेगा ही। बातें समझेगा नहीं तो पुनः-पुनः सुनेगा, समझने का भरसक प्रयत्न करेगा। जो अगम अगोचर तत्त्व है, जो जड़-चेतन द्रव्यों का स्वरूप समझानेवाला तत्त्वज्ञान है... वह जानने की, समझने की इच्छा पैदा होने पर, जहाँ पर ये बातें सुनने को मिलेंगी वहाँ वह अवश्य जायेगा और सुनेगा | अमरीका, जापान, जर्मनी वगैरह देशों में जन्मे हुए ऐसे तत्त्व-जिज्ञासावाले लोग, क्या भारत में नहीं आते हैं? मुझ से भी ऐसे कुछ लोग मिले हुए हैं। प्राचीन धर्मग्रन्थों की बातें सुनने की, समझने की जिज्ञासा लेकर भी कई विदेशी भारत आते हैं। एक विदेशी ने
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