________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन- ९०
१८५
लड़के ने कहा : 'सेठ साहब, मैं जैन हूँ। हमेशा गर्म पानी पीता हूँ । पानी घर से लेकर आता हूँ। सूर्यास्त के बाद खाना नहीं खाता हूँ और पानी भी नहीं पीता हूँ। इसलिए पानी पी लिया और श्री नमस्कार महामंत्र का स्मरण कर लिया ।'
'तो क्या तू हमेशा शाम को भूखा रहता है? मेरे पास नौकरी करनेवाला भूखा रहे - यह मेरे लिए शर्म की बात है।' सेठ ने कुछ क्षण सोचा और बोले : 'कल से तू शाम को पाँच बजे ऑफिस से छुट्टी ले लेना । शाम को भोजन करना। दो महीना तू शाम को भूखा रहा, मुझे इस बात का दुःख हो रहा है।' लड़के ने भी अपना कर्तव्य निभाया :
लड़के ने बड़ी प्रामाणिकता से सेठ का काम किया । सेठ के घर पर वह जाता और घर का काम भी करता । सेठ ने उसको अपना पार्टनर बनाया और जब सेठ मृत्युशय्या पर थे तब उन्होंने ऑफिस उसको सौंप दी। लड़का सेठ के उपकारों के भार से दब गया था, रो पड़ा । सेठ ने मरते समय सेठानी के सामने उंगली उठा कर लड़के को मौन भाषा में जो कहना था सो कह दिया | सेठ की मृत्यु हो गई। उस लड़के ने सेठानी को काफी आश्वासन दिया । आर्थिक व्यवस्था जमा दी । और सेठानी से कहा: 'मैं आपका ही लड़का हूँ, आप मेरी माता हैं। मैं हमेशा यहाँ आऊँगा । जो भी काम-काज हो, मुझे बताते रहना। सेठ साहब के गुणों को मैं कभी नहीं भूल सकता! वे महान् उदारचित्त सद्गृहस्थ थे। उनमें श्रेष्ठ मानवता थी । उन्होंने ही मुझे ऊँचा उठाया । उनके उपकारों का बदला मैं कब चुकाऊँगा?'
जब तक सेठानी का जीवन रहा, यह युवक वहाँ जाता रहा, सेवा करता रहा और सेठ के एवं सेठानी के गुणों की प्रशंसा करता रहा । सेठानी को हर कार्य में सहयोग देता रहा। उनके अनुकूल प्रवृत्ति करता रहा ।
'गुणपक्षपात' का यह सामान्य धर्म आप लोगों को भी आत्मसात् हो, यही मंगल कामना ।
आज बस, इतना ही ।
For Private And Personal Use Only