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प्रवचन-९०
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किया। देवेन्द्रनाथ को प्रतिवर्ष ढाई हजार रुपया देने का नक्की किया और बाद में पेढ़ी भी उनको सौंप दी।
लोगों ने देवेन्द्रनाथ के सौजन्य की प्रशंसा की, लेनदारों के सौजन्य को भी
सराहा ।
राजा प्रजा के साथ जिये :
दूसरी एक घटना पुराने समय की है। इटली देश की रानी मार्गारेट, अपने नौकरों के साथ आल्प्स पर्वत पर चढ़ रही थी। रास्ते में हवा का बवंडर आया । रास्ते में 'आल्पाइन क्लब' का एक छोटा-सा बंगला था। रानी अपने नौकरों के साथ उस बंगले में पहुँची । रानी को देखकर बंगले में जो लोग थे, उन्होंने बाहर जाने की तैयारी की। रानी ने कहा : 'यह आफत अपने सब पर आयी है। इस समय आप सभी मेरे देश में और इस बंगले में मेरे मेहमान हो । अपन सबको यहाँ बैठने की जगह नहीं मिलेगी तो सब खड़े रहेंगे। परन्तु रहेंगे सब साथ। ईश्वर ने मुझे राजसिंहासन दिया है..... उच्चपद दिया है, तो ऐसे समय मुझे सज्जनता बतानी ही चाहिए ।'
वहाँ उपस्थित देश-विदेश के लोग हर्षविभोर हो गए। रानी के सौजन्य की सराहना करने लगे। रानी की मृत्यु के बाद भी इटली की प्रजा उसके गुणों को नहीं भूली ।
सहानुभूति से सबको जीतो :
एक १८-१९ साल का लड़का, नौकरी करने गुजरात से बम्बई आया । एक महीने तक उसको कोई नौकरी नहीं मिली। बाद में एक परिचित भाई के द्वारा शेयर बाजार में नौकरी मिल गई ।
सेठ लवाणा जाति के थे । यह लड़का जैन था । धार्मिक था। रात्रिभोजन नहीं करता था, रोजाना गरम पानी पीता था। पायधूनी से पैदल चल कर वह फोर्ट में जाता था। शाम को ऑफिस बंद होने पर पैदल घर पर जाता था । सूर्यास्त हो जाता था इसलिए शाम को वह भोजन नहीं कर पाता था ।
एक दिन शाम को पाँच बजे, यह लड़का ऑफिस में एक जगह बैठकर पानी पी रहा था...... सेठ ने उसको देखा। पानी पीने के बाद उस लड़के ने दो हाथ जोड़े..... कुछ बोला और खड़ा हो गया । सेठ ने उसको पास में बुलाकर पूछा : 'तूने यह क्या किया ?'
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