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प्रवचन-७७
४३ गोद हरी करना चाहते हैं न? जिस सघन आत्मीयता के लिए मनुष्य तरसता है और घर बसाता है, उसका कहीं नामोनिशान भी दिखता है?
कोई ज्ञान का प्रकाश नहीं, कोई संयम की सुवास नहीं...कैसी करुण परिस्थिति निर्मित हो गई है? बस, बढ़िया कपड़े पहनो, बढ़िया आभूषण पहनो, बढ़िया शृंगार सज लो और दूसरों पर सौन्दर्य की और वैभव की छाप डालने के लिए भटकते रहो... | धन-वैभव का चमत्कार दिखाने के लिए बड़े बंगले बना लो, बढ़िया मोटर बसा लो, बढ़िया गृहसज्जा कर लो...| टी.वी., विडियो, फ्रिज, फोन, फियाट बसा लो, बड़प्पन का, वैभव का, सफलताओं का ढिंढोरा पीटने के लिए, धन की होली जलायी जा रही है।
अनीति से धनोपार्जन और उस धन का उद्धत अपव्यय...|
आज का मनुष्य बुद्धिमान् तो है, परन्तु मूर्खता भी कम नहीं है। बुद्धिमानी और मूर्खता का कैसा विचित्र संयोग देखने को मिलता है। अज्ञान और असंयम की जुगलबंदी है : ___ अज्ञान और असंयम ने मनुष्य को असमंजसों में घेर लिया है, विडंबनाओं में उलझा दिया है, संकटों से जकड़ लिया है। यह क्या जीवन है? जिसमें न संतोष है, न चैन है, न उत्साह है, न कोई उज्ज्वल भविष्य है। जब तक अज्ञान को मिटाया न जाय और असंयम का त्याग न किया जाय, तब तक इस परिस्थिति में परिवर्तन आना संभव नहीं है।
अज्ञान को अज्ञान समझे हो? असंयम को असंयम मानते हो? विष होते हुए भी अमृत मानकर पी लिया जाय तो? ऐसा ही कुछ हो रहा है। ___ जिसको अंधकार ही प्रिय हो, उसके आगे प्रकाश की प्रशंसा करने से क्या? जिसको बदबू ही पसन्द हो, उसके आगे इत्र की सुगन्ध की प्रशंसा करने से क्या? वैसे जिनको अज्ञान ही प्रिय है, उनके सामने ज्ञान और ज्ञानी की प्रशंसा करने से क्या? जिनको दुराचार ही प्रिय है उनके आगे सदाचारों की प्रशंसा करने से फायदा क्या? ___ मैंने आप लोगों को कई बार कहा है कि आप लोग जो जो धर्मक्रियाएँ करते हों, उन धर्मक्रियाओं के सूत्रों का अर्थज्ञान प्राप्त कर लो। कहा है न? आप लोगों ने अर्थज्ञान प्राप्त किया? नहीं न? क्यों? ज्ञान प्रिय नहीं है... अज्ञान प्रिय है।
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