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प्रवचन-८४
११६ 20 पैसा कब कमाना और कब खर्च करना, यह भी एक सीखने--
समझने की चीज है। समय की परख बड़ी महत्त्वपूर्ण चीज है। ० समय को परखने के लिए सूक्ष्म बुद्धि चाहिए। पैनी बुद्धि
चाहिए। ० व्यय और सद्व्यय में अंतर है। ० बचत यह कंजूसाई नहीं है। ० मूर्ख व्यक्तियों के पास पैसा बढ़ने से उनमें अनेक दूषण प्रविष्ट
हो जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए पाप 'फैशन' बन गये हैं। ० यदि स्वयं में समय को जाँचने की क्षमता नहीं है तो वैसे
समयदर्शी व्यक्ति का मार्गदर्शन लेते रहना चाहिए। ० सम्यज्ञ व्यक्ति मुसीबतों के बीच भी रास्ता खोज निकालता है। ० कुछ ऐसे सनकी श्रीमंतों की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं...कि जिन्होंने अपने विचित्र शौक पूरे करने में पानी की भाँति संपत्ति बहा दी...वे जब मरे तो कफन के टुकड़े के
लिए भी तरसते रहे। =0 मितव्ययता' सद्गृहस्थ का लक्षण है।
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प्रवचन : ८४
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में, गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए २९वाँ सामान्य धर्म बता रहे हैं : 'कालोचित अपेक्षा' का। जिस समय जो छोड़ना हो छोड़ देना और जिस समय जो लेना हो, ले लेना - इसको कहते हैं 'कालोचित अपेक्षा' । विशेष करके यह बात धन-संपत्ति को लेकर कही गई है। किस समय पैसे का त्याग करना और किस समय पैसा प्राप्त करना - यह विवेक मनुष्य में होना चाहिए। यह विवेक अत्यन्त निपुण बुद्धि से ही किया जा सकता है। वैसे अन्यान्य कार्यों को लेकर भी यह विवेक होना आवश्यक है।
० जिस समय दान देना आवश्यक हो, उस समय दान दो। ० जिस समय दूसरों को भोजन देना हो, उस समय भोजन दो। ० जिस समय दूसरों की सेवा करने की हो, उस समय सेवा करो।
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