________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-८६
१४१ जिनवचनों के प्रति प्रेम होने पर ऐसी बातें नहीं करोगे। आप सुनते ही रहोगे। केवल सुनोगे ही नहीं, जीवन में जो बातें शक्य होंगी, उन बातों का पालन करोगे। आपका धर्मश्रवण जीवनस्पर्शी होगा। आपका श्रवण आत्मविशुद्धि की दृष्टि से होगा। ज्यों-ज्यों आप धर्मश्रवण करते जाओगे त्यों-त्यों आपका जीवन-व्यवहार विशुद्ध बनता जायेगा। दूसरे मनुष्यों के साथ, आपका व्यवहार मैत्रीपूर्ण बनता जायेगा। खाने-पीने में, आप संयम का पालन करोगे। पढ़ने में, सुनने में एवं देखने में विवेक आ जायेगा। मनोबल एवं शरीरबल की दृष्टि से जो भी धर्मपालन शक्य होगा, आप करोगे ही।
जिन बातों का पालन आप नहीं कर सकते हैं वर्तमान में, उन बातों का पालन करने की इच्छा आपके मन में बनी रहेगी। जैसे कि आप रात्रिभोजन करना नहीं चाहते, परन्तु वर्तमान संयोगों में आप रात्रिभोजन का त्याग नहीं कर सकते हैं, तो भी आपके मन में रात्रिभोजन नहीं करने की इच्छा बनी रहेगी। भविष्य में जब अनुकूल संयोग मिलेंगे, आप रात्रिभोजन का त्याग कर देंगे।
आपकी इच्छा है कि प्रतिदिन एक 'सामायिक' की धर्मक्रिया करना, आज आप नहीं कर पा रहे हैं, परन्तु आपकी इच्छा तो बनी रहेगी। आन्तरिक भाव बना रहेगा। जब अनुकूल परिस्थिति प्राप्त होगी तब आप सामायिक की धर्मक्रिया करने लगोगे। इसी प्रकार दान, शील और तप के विषय में समझ लेना चाहिए | सत्य, अचौर्य और अपरिग्रह के विषय में भी समझ लेना चाहिए। भावना तो जिंदा रहनी ही चाहिए :
यह बात महत्त्वपूर्ण है। जिस धर्म की आप आज पालना नहीं कर सकते हैं, उस धर्म की पालना करने की दृढ़ भावना आपको रखनी चाहिए। उपेक्षा नहीं करनी चाहिए | आज आप व्रतों का एवं नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं, परन्तु पालन करने की दृढ़ भावना तो रखनी ही चाहिए | उस भावना को सफल बनाने के लिए एक उपाय है। भावना को भरीपूरी बनाने के उपाय :
आप जो धर्म-आराधना नहीं कर रहे हैं, वह धर्म-आराधना दूसरा व्यक्ति कर रहा है, आप उसकी प्रशंसा करते रहो। आप उसकी अवसरोचित सेवा करते रहो।
For Private And Personal Use Only