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प्रवचन- ८९
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अभावों से पीड़ित मनुष्य को अनोति से कहीं ज्यादा खतरनाक होती है तृष्णाग्रस्त व्यक्ति को अनोति !
● तृष्णा, आसक्ति यह शल्य है... यदि दिल में है... तो ऑपरेशन करवाना होगा।
आसक्ति कौन-सा पाप नहीं करवाती है?
● चुनावों के दंगल में एक-दूसरे के बीच आरोपों का जंगल खड़ा हो जाता है! स्वस्थ और सैद्धांतिक लड़ाईवाले चुनाव है कहाँ ? एक-दूसरे पर कोचड़ उछालना, व्यक्तिगत राग-द्वेष को लड़ाइयों से पूरी चुनाव-पद्धति को तीव्र राग-द्वेष का 'केन्सर' लग गया है ।
● चुनाव-पद्धति के बारे में नये सिरे से सोचने का समय अब आ चुका है।
● 'इलेक्शन' के बजाय 'सिलेक्शन' को पद्धति शायद ज्यादा सार्थक हो सकती है।
● अब तो अपनी धार्मिक संस्थाओं में भी चुनाव का भूत दाखिल हो गया! चुनाव बनाम कुर्सी को लड़ाई! अपनीअपनी महत्त्वाकांक्षाओं को लड़ाई !
प्रवचन : ८९
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परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी ने, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का सुचारु प्रतिपादन किया है। सूत्रात्मक शैली में सुन्दर रचना की है। टीकाकार आचार्यदेव ने बहुत ही मार्मिक ढंग से एक - एक धर्म का स्पष्ट अर्थनिर्णय किया है।
अभिनिवेश क्या है ? :
‘अभिनिवेश' शब्द का ऐसा अर्थनिर्णय आप लोगों ने कभी सुना था ? कितना रहस्यभूत अर्थ किया है! दूसरों का पराभव करने के लक्ष्य से जो अन्यायात्मक प्रवृत्ति की जाय - वह है अभिनिवेश ! ऐसा अभिनिवेश गृहस्थ स्त्रीपुरुषों के मन में नहीं होना चाहिए ! नीतिमार्ग का उल्लंघन करने की इच्छा ही मन में पैदा नहीं होनी चाहिए । टीकाकार आचार्यश्री कहते हैं कि नीतिमार्ग का