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प्रवचन-८८८
१६४ इससे परिवार में क्या सुख बढ़ता है? शान्ति बढ़ती है? नहीं, दुःख बढ़ता है, क्लेश और अशान्ति बढ़ती है।
सभा में से : ऐसा देखते हैं, फिर भी अभिनिवेश क्यों छूटता नहीं? महाराजश्री : आप आत्मसाक्षी से संकल्प कर लें तो अभिनिवेश का त्याग सरलता से कर पायेंगे। 'मुझे दूसरों का पराभव नहीं करना है। कोई मेरा पराभव करता हो तो करे, मुझे दूसरों का पराभव नहीं करना है। सभी जीव मेरे मित्र हैं, मित्रों का पराभव कैसे करूँ? यदि कोई मेरा पराभव करता है, वह मेरे ही पापकर्मों का फल है। मैं समता से पापकर्मों का फल भोगूंगा तो मेरे कर्म नष्ट होंगे। मुझे नये पापकर्म नहीं बाँधने हैं।' इस प्रकार आपको प्रतिदिन चिंतन करना होगा। दूसरे लोग आपको अभिनिवेश के लिए प्रेरित करें तो भी आपको दृढ़ता से अपने संकल्प को निभाना होगा।
सभा में से : व्यक्तिगत हम तो समता रख ले, परन्तु परिवार के लोग नहीं मानते। वे तो पराभव का बदला लेने के लिए तत्पर होते हैं। समता को मत भूलो : __ महाराजश्री : इसलिए तो मैं कहता हूँ कि परिवार के लोगों को भी आप ये बातें जो यहाँ सुनते हैं, उनको सुनाकर समझाने का प्रयत्न करें | उनको भी प्रवचन सुनने की प्रेरणा दें। अच्छी किताबें पढ़ने को दें। उनके विचारों को बदलने का प्रयास करें। फिर भी नहीं मानें तो उनको जो करना हो सो करें, आप नहीं करें। आप उनके प्रति क्रोध भी नहीं करें| समता रखें। मैं जानता हूँ, आजकल आपके घर में आपकी सही बात भी माननेवाले लोग नहीं हैं। सही है न बात? या तो आपके पुण्योदय में कमी है अथवा जीवों की योग्यता कम होती जा रही है।
कम से कम, एक काम तो करना ही चाहिए। जिन लोगों का आपके ऊपर प्रत्यक्ष या परोक्ष उपकार है, उन लोगों का कभी पराभव नहीं करें। पराभव करने की भावना ही नहीं जगने दें। कभी वे आपको दो कटु शब्द सुना दें, फिर भी आप सहन कर लें। उपकारी का पराभव करने की भावना विनाश करनेवाली होती है। उपकारी पर भी अपकार :
राजस्थान के इतिहास की एक घटना कहता हूँ। जोधपुर राज्य के
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