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प्रवचन-८८
१६५ महाराजा जसवन्तसिंहजी को औरंगजेब ने काबुल भेज दिया था। वहीं पर उनकी मौत हो गई थी। षड्यंत्र रचा गया था। जसवन्तसिंह की रानी ने दो पुत्रों को जन्म दिया। एक पुत्र मर गया, दूसरा जिंदा रहा। औरंगजेब उस पुत्र को अपने पास रखना चाहता था | परन्तु वीर दुर्गादास के प्रयत्नों से रानी और पुत्र बच गये, उनको जोधपुर लाया गया। राजकुमार अजीतसिंह का राज्याभिषेक किया गया। वीर दुर्गादास ने उनकी रक्षा की। परन्तु जब अजीतसिंह बड़ा हुआ और व्यसनसेवन करने लगा, दुर्गादास ने उनको रोकने की कोशिश की। बार-बार टोकने लगा | दुर्गादास चाहते थे कि अजीतसिंह पराक्रमी बने और मुगलों के सामने सिंह बनकर लड़े। व्यसनों में यदि वह फँस गया तो कायर बन जायेगा। परन्तु अजीतसिंह को दुर्गादास की बातें पसन्द नहीं आयीं। उसने दुर्गादास की हत्या का षड्यंत्र रचा। दुर्गादास की हत्या करने के लिए उसने दिल्ली से हत्यारों को बुलाया और राजसभा के बाहर खड़ा कर दिया।
दुर्गादास को अजीतसिंह ने राजसभा में पधारने का निमन्त्रण दिया । दुर्गादास जोधपुर गये, वहाँ उनको षड्यंत्र का पता लग गया। उनके एक मित्र ने उनको राजसभा में नहीं जाने को समझाया । परन्तु दुर्गादास राजसभा में गये। अजीतसिंह ने खड़े होकर विनय से उनका स्वागत किया! दुर्गादास ने कहा : 'जब तेरे पिताजी का स्वर्गवास हुआ, उन्होंने मुझे कहा था कि 'मेरी मृत्यु के बाद यदि रानी पुत्र को जन्म दें, तो जब पुत्र बड़ा हो, तब उसको मेरा गुप्त खजाना दे देना।' गुप्त खजाना मेरे पास है, अब मैं तुझे दे देना चाहता हूँ! __ अजीतसिंह आनन्द से झूम उठा। उसने मंत्री से कहा : 'द्वार पर जो दिल्ली के मेहमान खड़े हैं उनको भीतर बुला लो और तुम दुर्गादास के साथ जाओ, खजाना लाने का प्रबंध करो।'
दिल्ली से आये हुए हत्यारे भीतर आ गये और दुर्गादास तीव्र गति से बाहर निकल गये! बच गये | उनके हृदय में अजीतसिंह की कृतघ्नता के प्रति घोर रोष पैदा हुआ। तब से उन्होंने जोधपुर छोड़ दिया। बाद में तो मुगल बादशाह औरंगजेब ने जोधपुर पर कब्जा कर लिया।
अभिनिवेश का त्याग करें। इस विषय में और भी बातें करनी हैं, आगे करूँगा,
आज बस, इतना ही।
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