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प्रवचन-८७
१४७ जाता है उतना उपदेश पूजा-पद्धति और पूजक की योग्यता के विषय में दिया जाता है क्या? सामायिक और प्रतिक्रमण जैसी विशिष्ट धर्मक्रियाओं के लिए जितना उपदेश दिया जाता है उतना उपदेश समताभाव एवं पापभीरुता के विषय में दिया जाता है क्या?
परिणाम प्रत्यक्ष है! गृहस्थ जीवन में से सामान्य धर्म लुप्तप्राय हो गये। विशेष धर्मों का पालन अविधियों से होने लगा और क्रिया-जड़ों का अभिमान आसमान को छूने लगा। ज्ञानशून्य क्रिया करनेवाले क्रियाजड़ होते हैं | आताजाता कुछ नहीं और अभिमान का पार नहीं! जीवन में सामान्य धर्मों का पालन नहीं और 'धर्मात्मा' कहलाना! चल रहा है न ऐसा सब कुछ?
इसलिए कहता हूँ कि प्रतिदिन धर्मग्रन्थों का श्रवण करते रहो। थोड़ा थोड़ा भी शास्त्रज्ञान प्राप्त करो। जीवनस्पर्शी ज्ञान प्राप्त करते रहो। जब-जब ज्ञानी सदगुरु का संयोग मिले, तब-तब उनसे धर्मोपदेश सुनने का प्रयत्न करें।
जब कभी मन खिन्नता से भर जाय, आप करुणावंत ज्ञानी सद्गुरु के पास पहुँच जाया करें, उनके धर्मोपदेश से आपकी खिन्नता दूर हो जायेगी। प्रफुल्लितता प्राप्त होगी।
जब कभी मन संतप्त हो जाय, आप कोई निष्कारणवत्सल सद्गुरु के चरणों में पहुँच जाया करें, उनके वचनामृत से संताप दूर होंगे और शीतलता प्राप्त होगी।
जब कभी मन व्याकुल बन जाय, आप किसी विषयविरक्त ज्ञानी सदगुरु के पास चले जायें और उनके चरणों में आत्मनिवेदन करें। उनके आशीर्वचनों से मोहमूढ़ता दूर होगी और ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होगा। श्री 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ की टीका में ही यह बात कही गई है -
क्लान्तमुपोज्झति खेदं तप्तं निर्वाति बुध्यते मूढम् । स्थिरतामेति व्याकुलमुपयुक्तसुभाषितं चेतः ।।
नरवीर की कहानी :
सद्गुरु का संयोग कभी अचानक प्राप्त हो जाता है, कभी प्रयत्न से खोज करनी पड़ती है। नरवीर, कि जो गुजरात और मालवदेश की 'बोर्डर' पर कुख्यात डाकू था, उसको सद्गुरु का संयोग अचानक मिल गया था। जब नरवीर सर्वहारा बन गया था, उसका सब कुछ नष्ट हो गया था, उसकी
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