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प्रवचन- ८८
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इज़्ज़त को बट्टा लगता हुआ देखकर उन्होंने भी जल्दबाजी की, सीताजी का जंगल में त्याग करवा दिया।
वे तीन सौतन रानियाँ उस दिन कितनी खुश हुई होंगी? सीताजी का पराभव देखकर और अपनी अन्यायपूर्ण चाल सफल होने पर उन रानियों की खुशी का पार नहीं रहा होगा।
ऋषिदत्ता की कहानी :
कावेरी नगरी की राजकुमारी रुक्मिणी ने जब सुना कि राजकुमार कनकरथ ने रास्ते में ही एक ऋषिकन्या के साथ शादी कर ली है और वह वापस लौट गया है। रुक्मिणी को गहरा सदमा पहुँचा । ऋषिकन्या के प्रति ईर्ष्या... शत्रुता पैदा हुई। हालाँकि ऋषिकन्या ने उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ा था ! परन्तु रुक्मिणी का सोचना ही गलत था न ! 'मेरे साथ शादी करने के लिए राजकुमार यहाँ आ रहा था ... रास्ते में उस जादूगरनी ऋषिकन्या ने उसको सम्मोहित कर दिया... राजकुमार ने उसके साथ शादी कर ली और मैं यहाँ इन्तजार करती बैठी रही... । '
वास्तव में बात ही दूसरी थी। ऋषिकन्या ने राजकुमार को सम्मोहित नहीं किया था, परन्तु राजकुमार स्वयं ऋषिकन्या पर मोहित हो गया था । ऋषिकन्या का नाम था ऋषिदत्ता । अपने पिता राजर्षि के पास जंगल के आश्रम में रहती थी। जन्म देने के बाद तुरन्त ही रानी की मृत्यु हो गई थी। राजर्षि ने ही उसका लालन-पालन किया था। राजर्षि ने ही राजकुमार कनकरथ के साथ ऋषिदत्ता की शादी कर दी थी। शादी के बाद कुछ समय आश्रम में रह कर, ऋषिदत्ता को लेकर कनकरथ अपने नगर में चला गया था ।
ऋषिदत्ता के प्रति सारे राजमहल की प्रीति बन गई थी । सारे नगर में उसकी कीर्ति फैल गई थी... परन्तु रुक्मिणी के हृदय में शत्रुता की आग सुलग रही थी । ऋषिदत्ता का पराभव करने का, उसको 'राक्षसी' के रूप में बदनाम करने का षड्यंत्र बनाया। इसी को कहते हैं अभिनिवेश। ग्रन्थकार आचार्यदेव ऐसे अभिनिवेश का त्याग करने को कहते हैं। गृहस्थ जीवन में अभिनिवेश अच्छा नहीं है। इससे द्वेष पुष्ट होता है । अशान्ति, बेचैनी बढ़ती है। प्रगाढ़ पापकर्म बंधते हैं। अनेक जन्मों तक अनन्त दुःख सहन करने पड़ते हैं। परन्तु रुक्मिणी को ये सारी बातें कौन बतानेवाला था? उसने तो सुलसा नाम की जोगन के साथ दोस्ती कर ली थी ।
सुलसा जोगन मांत्रिक थी। ऋषिदत्ता के विषय में रुक्मिणी ने सारी बात
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