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प्रवचन- ८४
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चाँद खाँ बहादुर था, पराक्रमी था, परन्तु कालज्ञ नहीं था। वह तो खुश हो उठा। रानी ने नये वस्त्र, मुकुट, जूते ... सब कुछ भेजा। चाँद खाँ ने बड़े प्रेम से सब पहना। पहन कर दस कदम भी नहीं चला होगा... जमीन पर गिर पड़ा और तुरन्त ही मर गया ।
रानी ने मुकुट और जूते में विष का विलेपन कर दिया था। रानी ने आकर लाश पर थूका और बोली : ‘पापी... कुत्ते ... तुझे इस तरह मरना ही था... परस्त्रीलंपट' बोलकर, लात मार कर वह गुप्त रास्ते से नगर से बाहर निकल गई।
यदि चाँद खाँ बुद्धिमान् होता, देश और काल को समझने वाला होता तो गिनोर में वह रानी के साथ शादी करने तैयार नहीं होता । 'राजपूत रानी इस प्रकार सहजता से मेरे साथ शादी करने क्यों तैयार होती है ? और इतनी जल्दी क्यों करती है? शादी के समय मुझे पहनने के वस्त्र... मुकुट... जूते वह क्यों भेजती है?' इसमें से एक पर भी विचार उसने नहीं किया... आया ही नहीं ऐसा एक भी विचार । न था वह कालज्ञ, न था वह क्षेत्रज्ञ ! मारा गया । रानी समयज्ञ थी, इसलिए तुरन्त ही शादी के लिए मान गयी ! उसने समय को परख लिया। चाँद खाँ का विश्वास प्राप्त कर लिया ।
शीलरक्षा महान् धर्म :
सभा में से: रानी ने विश्वासघात किया था न ?
महाराजश्री : अपनी शीलरक्षा करने के लिए विश्वासघात करना पाप नहीं है। छल-कपट करना पाप नहीं है।
सभा में से: शील भंग पाप है वैसे जीव - हिंसा भी पाप है न ? रानी ने शील बचाया, परन्तु मनुष्य - हत्या कर दी न?
महाराजश्री : दोनों पाप हैं, परन्तु शील भंग बड़ा पाप है। हिंसा, उससे छोटा पाप है। बड़े पाप से बचने के लिए छोटा पाप करना, ऐसे प्रसंग में अनिवार्य हो जाता है । इस सिद्धान्त को रामायण में स्पष्ट किया गया है। सीताजी की शीलरक्षा के लिए रामायण का प्रचंड युद्ध हुआ था । करोड़ों मनुष्यों का संहार हुआ था । स्त्री की शीलरक्षा के लिए हिंसा को वर्ज्य नहीं माना गया है।
स्त्री में यदि शक्ति - सामर्थ्य हो तो उस पर बलात्कार करनेवाले के प्राण लेकर भी अपनी शीलरक्षा कर सकती है और शक्ति नहीं हो तो अपने प्राणों का त्याग करके भी वह शीलरक्षा कर सकती है ।
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