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प्रवचन-८५ ___ बुद्ध के मुखमंडल पर स्मित उभर आया। उन्होंने कहा : 'अंकमाल अभी तो तू कलाएँ सीख कर आया है, परीक्षा देना बाकी है! परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर अभिमान करना!' _ 'प्रभो, मैं अवश्य परीक्षा में उत्तीर्ण होऊँगा...!' इतना कहकर वह अपने निवासस्थान पर चला गया।
दूसरे दिन बुद्ध ने अपने एक शिष्य को वेश-परिवर्तन करवा कर अंकमाल के पास भेजा। उस बौद्ध श्रमण ने अंकमाल को अकारण ही कटु शब्द सुनाये... उसका अपमान किया...| अंकमाल क्रोध से उसको मारने दौड़ा। वह श्रमण स्मित कर के वहाँ से बुद्ध के पास चला आया और जो घटना बनी वह बता दी।
बुद्ध ने उसी दिन दोपहर को दूसरे दो भिक्षुओं को वेश-परिवर्तन करवा कर अंकमाल के पास भेजा। उन्होंने जाकर अंकमाल से कहा :
'आयुष्यमन्, हम सम्राट हर्ष के अनुचर हैं। सम्राट आपको मंत्रीपद देना चाहते हैं। उन्होंने हमको आपका प्रत्युत्तर लेने भेजा है। क्या आप मंत्रीपद का स्वीकार करेंगे? सम्राट आपकी ख्याति सुनकर प्रभावित हुए हैं।'
अंकमाल मंत्रीपद की बात सुनकर आश्चर्य से और आनंद से स्तब्ध रह गया। सत्ता के प्रलोभन ने उसको गले से पकड़ा। उसने स्वीकृति देते हुए कहा : 'अवश्य... अवश्य... मैं सम्राट की इच्छा का आदर करता हूँ | आप कहें तब...' अंकमाल बोलता रहा और वे दोनों भिक्षु एक-दूसरे के सामने हँसते हुए वहाँ से चल दिये। अंकमाल कुछ समझ नहीं पाया... जाते हुए उन दोनों पुरुषों को देखता रह गया!
शाम को भगवान् बुद्ध स्वयं अंकमाल के वहाँ पहुँचे । साथ में उनकी शिष्या आम्रपाली भी थी। अंकमाल ने बुद्ध का प्रेम से स्वागत किया... बुद्ध एक काष्ठासन पर बैठे | थोड़े दूर आम्रपाली बैठी। अंकमाल बुद्ध से बात करने लगा... परन्तु बार-बार वह आम्रपाली को देखता रहा। आम्रपाली के अद्भुत रूप ने अंकमाल को मोहित कर दिया। बुद्ध के सवाल :
बुद्ध आम्रपाली के साथ आश्रम लौट गये। दूसरे दिन अंकमाल आश्रम में गया । बुद्ध ने अंकमाल से पूछा : 'वत्स! क्या तूने क्रोध, लोभ और काम पर विजय पाने की कला भी प्राप्त की है न?'
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