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प्रवचन-८६
१३५ 10 जागृतिपूर्वक धर्मश्रवण करने से धीरे-धीरे मन धर्म के प्रति
आकृष्ट होगा। धर्म की बुनियादी बातें जीवन में अपने आप
अंकुरित होंगी। ७० प्रवचन श्रवण में कई सावधानियाँ बरतने की हैं... गतानुगतिक
ढंग से... 'श्रुतम् हंति पापानि-सुना तो पाप दूर हो जायेंगे।' वाले ढंग से तो एक-दो या दस-पाँच नहीं, सैकड़ों प्रवचन
सुनने पर भी कुछ परिवर्तन होने का नहीं है! ० जिस धर्म का पालन अपन स्वयं नहीं कर सकते और कोई
करता है... तो हमें उनकी प्रशंसा-अनुमोदना करनी चाहिए।
सराहना करनी चाहिए। ० सम्यक दर्शन का एक आचार है 'उपबृंहणा' अच्छे कार्य की
अनुमोदना करना। यह बात हम भूलते जा रहे हैं। ईर्ष्या और स्पर्धा के युग में सराहना लुप्त होती जा रही है। ० धर्मश्रवण के पश्चात् एक लंबी प्रक्रिया होती है चिंतन की,
मनन की... उससे गुजरने पर ही तत्व-अमृत की प्राप्ति हो सकती है।
प्रवचन : ८६
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने, स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रंथ के प्रारंभ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन किया है। यदि आप लोग अपने जीवन में इन धर्मों का पालन करने लगें तो एक तंदुरस्त समाज-रचना हो सकती है। सुसंस्कृत समाज-रचना हो सकती है। ऐसा समाज मोक्षमार्ग की आराधना करने में सक्षम हो सकता है।
जीवन में सामान्य धर्मों का पालन करने के लिए मनुष्य में दृढ़ मनोबल चाहिए | चूँकि आज बहुजन समाज में इन सामान्य धर्मों की घोर उपेक्षा हो रही है। पापाचरणों में मनुष्य आसक्त बना है। ऐसे वातावरण में यदि मनुष्य को इन सामान्य धर्मों का पालन करना है, वैसी जीवन-पद्धति बनाना है तो दृढ़ मनोबल चाहिएगा ही।
सामान्य धर्मों के पालन से होने वाले व्यक्तिगत लाभ, पारिवारिक लाभ
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