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प्रवचन-८४
११९ बनाने के लिए रु.५१,०००/- का दान दिया। लड़के ने कहा : 'पिताजी, मरीन ड्राइव पर तीन-चार लाख में एक फ्लेट ले लेवें...' सेठ ने कहा : 'क्यों? इन दो कमरे में अपन को क्या तकलीफ है? कितने अच्छे धार्मिक पड़ोसी हैं? पास में मंदिर है... उपाश्रय है...। स्नेही-स्वजन भी निकट रहते हैं। दूसरी बात यह है कि अपनी संपत्ति का जितना सद्व्यय हो-उतना ही अच्छा है। संपत्ति का अनावश्यक व्यय करते रहने से संपत्ति चली जाती है।' ___ मैं जानता हूँ कि उन्होंने घर में रेडियो भी नहीं बसाया था। सोफासेट या कोई फर्निचर भी घर में लाये नहीं थे। कार रखी थी... परन्तु दुकान जाने के लिए और तीर्थयात्रा करने के लिए! उस समय... आज से ४० वर्ष पूर्व उन्होंने अपने जीवन-काल में १५ लाख रुपयों का दान दिया था। परन्तु जाग्रत उतने थे कि नौकर सब्जी लेकर आया हो तो हिसाब एक-एक पैसे का लेते थे। अवसर आने पर नौकर को हजार रुपये भी बक्षिस दे देते थे। 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के टीकाकार आचार्यश्री कहते हैं :
__या काकिणीमप्यपथप्रपन्नामन्वेषते निष्कसहस्रतुल्याम् ।
कालेन कोटीष्वपि मुक्तहस्तस्तस्यानुबंधं न जहाति लक्ष्मीः ।। इस श्लोक का अर्थ सुन लो : 'जो मनुष्य, मार्ग में गिरी हुई एक कोड़ी को (एक पैसे को) एक हजार स्वर्णमुद्रा जैसी मानकर खोजता है और उचित समय पर एक करोड़ रुपये खर्च करने को अपने हाथ खुले रखता है, उस मनुष्य का संबंध लक्ष्मी छोड़ती नहीं है।' ज्यादा पैसा ज्यादा खर्चा :
शायद वर्तमान काल में यह बात आपके दिमाग को ऊंचेगी नहीं! चूंकि मैं देखता हूँ-श्रीमंताई की निशानी बन गई है पैसे का दुर्व्यय | जो व्यक्ति ज्यादा पैसा उड़ाता रहता है... यानी अर्थव्यय करता है... वह श्रीमन्त कहलाता है। स्वार्थी लोग उसकी प्रशंसा करते हैं। चार मित्रों के साथ होटल में भोजन करने जाते हैं और सौ/दो सौ रुपये खर्च कर देते हैं। सिनेमा देखने जाते हैं और पचास/सौ रुपये खर्च कर देते हैं। क्या यह सब आवश्यक खर्च है? घर में भी अनावश्यक खर्च कितना बढ़ गया है? 'पैसे हैं इसलिए खर्च करो,' यह अज्ञानी जीवों का खयाल होता है। अज्ञानी में विवेक तो होता नहीं है।
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