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प्रवचन-८४
१२३ कोई आवश्यक नहीं कि वैभवशालियों में विवेकबुद्धि हो ही। कुछ लोग तो संपत्ति का ऐसा दुर्व्यय करते हैं कि जिनको सनकी या अपव्ययी कह सकते हैं। जिन साधनों से अनेक उपयोगी कार्य हो सकते हों उस उद्धत अहंकार की पूर्ति में ऐसे ही लुटा दिया जाय तो उसे कौन समझदार कहेगा? इतिहास में ऐसे अपव्ययी सनकियों के अनेक उदाहरण मिलते हैं। कुछ दो-तीन उदाहरण आपको सुनाता हूँ। कुछ उदाहरण सनकी लोगों के :
१२वीं शताब्दी का प्रसिद्ध यमनसम्राट अल-अजीज तो बेमिसाल था । प्रतिदिन नये वस्त्र तैयार करने के लिए सैकड़ों कारीगर उसके वहाँ रहते थे। वस्त्र भी सामान्य नहीं बनते थे, हीरे-पन्ने से जड़ित होते थे। मासिक खर्च करोड़ों रुपयों का होता था। इस अपव्यय से प्रजा में विद्रोह हुआ। परिणाम क्या आया? सम्राट को मार दिया गया।
मिस्र के एक धनाढ्य 'अमीर बेसारी' की सनक और भी विचित्र थी। उसे विरासत में बेशुमार धन-संपत्ति मिली थी, जिसे उसने शराब में बरबाद कर डाला। वह जिन स्वर्ण-प्यालों में एक बार शराब पीता था, उसे मिट्टी के सकोरों की तरह फेंक देता था। दुबारा शराब नये सोने के प्याले में ही पीता था। उसने अपनी पूरी संपत्ति इस प्रकार शराब में गँवा दी। मरते समय उसके पास कफन के लिए भी पैसे नहीं रहे थे।
मंगोलिया के शेख शाहरुख को अपना जन्म दिन विचित्र प्रकार से मनाने का शौक था। उस दिन उसके पास जो भी मनुष्य जाता, उसे वह हीरेमोतियों से भरा थाल भेंट में देता! इस प्रकार उसने अपने ४२ जन्म दिन मनाये! परिणाम क्या आया? उसकी सारी संपत्ति हाथ से चली गई!
मिस्र की टकसाल का मालिक खलील था। उसकी मक्का-यात्रा बड़ी विचित्र ढंग से होती थी। रास्ते में सोने की मोहरें बिछाई जाती थीं... चूंकि उसका ऊँट जमीन पर नहीं, सोने पर कदम रखता हुआ चले! बाद में उन मोहरों को अन्य यात्री उठा लिया करते थे! उसका समस्त कोष इसी प्रकार समाप्त हो गया! दान भी समय व व्यक्ति को पहचान कर दें :
दान देना धर्म है, परन्तु समयोचित और व्यक्ति की पात्रता देखकर दान
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