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प्रवचन- ८३
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'मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि मनुष्य को हिम्मत - सत्त्व का विकास करना चाहिए, ऐसा नहीं करेंगे तो अपना मन संकुचित होकर बैठ जायेगा ।'
सभा में से : ऐसी हिम्मत तो बहुत थोड़े मनुष्यों में होती है न?
महाराजश्री : परन्तु आप भी हिम्मतवाले बन सकते हो। ऐसा क्यों मानते हो कि आप में हिम्मत नहीं आ सकती है । आप भी अपनी हिम्मत बढ़ाने का प्रयत्न करें। हिम्मत के बिना धर्मपुरुषार्थ भी नहीं हो सकेगा। सामान्य धर्मक्रिया कर लेना अलग बात है और धर्मपुरुषार्थ करना दूसरी बात है । यदि गुजरात के महासेनापति तेजपाल की पत्नी अनुपमादेवी में हिम्मत नहीं होती तो वह अकेली आबू के पहाड़ पर रहकर कलात्मक भव्य जिनमंदिरों का निर्माण नहीं करवा सकती थी। मात्र उसका छोटा भाई उसके पास था । यदि हिम्मत नहीं होती तो मालवा के महामंत्री पेथड़शाह देवगिरि में भव्य जिनमंदिर का निर्माण नहीं करवा सकते थे। यदि सात्त्विकता नहीं होती तो चन्द्रावतंसक राजा रात भर कायोत्सर्ग-ध्यान में स्थिर नहीं रह सकते थे और कुमारपाल युद्ध के मैदान पर प्रतिक्रमण नहीं करते।
यह तो हुई बड़े-बड़े पुरुषों की बात । अब एक छोटे बच्चे की हिम्मत की बात बताता हूँ। आगे चलकर वह बच्चा विश्व का प्रसिद्ध इतिहासकार बना । छोटा भी महान् बन सकता है :
उस लड़के का नाम 'विलियम प्रिस्कोट' था । वह स्कूल में पढ़ता था । तेजस्वी विद्यार्थी था। एक दिन की बात है । रिसेस का समय था। बच्चे खेल रहे थे। एक-दूसरे के सामने बिस्किट फेंक रहे थे। एक बिस्किट जोर से आया और विलियम की आँख में लगा । आँख फूट गई। तो कुछ समय के बाद, दूसरी आँख पर भी उसका प्रभाव पड़ा और वह भी फूट गई। तो भी विलियम निराश नहीं हुआ। उसने अपने मन में बड़ा इतिहासकार बनने का संकल्प किया ।
दूसरे लोगों के पास वह पुस्तकें पढ़वाता और एकाग्रता से सुनता, उस पर विचार करता। इस प्रकार दस वर्ष बीत गये। उसने अपना पुरुषार्थ जारी रखा। दूसरे अनेक ग्रन्थ उसने सुने । दीर्घकालीन पुरुषार्थ के बाद उसने इतिहास का बड़ा ग्रन्थ लिखा । 'फर्डिनान्ड एन्ड इसाबेला' नाम का ग्रन्थ प्रकाशित हुआ। प्रचंड पुरुषार्थ और दृढ़ मनोबल से अंध विलियम महान् इतिहासकार बना।
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