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प्रवचन-८१ ___ सभा में से : अति कामुक व्यक्तियों को भी हम मंदिर में आते हुए देखते हैं...कुछ धर्मक्रिया करते हुए भी देखते हैं...। आसक्ति खतरनाक है : ___ महाराजश्री : उनको कभी पूछ सको तो पूछना कि तुम मंदिर जाते हो, परंतु तुम्हारा मन परमात्मा में लगता है? जब तक तुम मंदिर में होते हो तब तक तुम्हारे मन में वैषयिक विचार नहीं आते हैं न? पूछना। अति कामासक्त व्यक्ति होगा तो मंदिर में भी उसका मन वैषयिक विचार करता रहेगा! मन परमात्मा के ध्यान में वहाँ स्थिर रह सकता है...जो मन कामासक्त नहीं हो।
हर मनुष्य में कामेच्छा होती ही है। मैथुन संज्ञा किसी को कम, किसी को ज्यादा, परन्तु हर मनुष्य को होती है। जो व्यक्ति कामेच्छा को वश में रखता है, कामेच्छा को पूर्ण करना नहीं चाहता है...वह व्यक्ति ब्रह्मचारी रह सकता है। कभी कामेच्छा प्रबल भी हो सकती है...उस समय भी संभोग से वो ही बच सकता है कि जिसका दृढ़ मनोबल हो, जो आत्मभाव में जाग्रत हो, प्रबल कामेच्छा को शान्त करने के उपाय जो जानता हो। तपश्चर्या, शास्त्रस्वाध्याय और परमात्म-प्रणिधान-ये तीन श्रेष्ठ उपाय हैं।
ज्यादातर कामेच्छा वैसे निमित्तों को पाकर प्रबल होती है। आप लोगों को अनुभव होगा कि वैसे सेक्सी गीत सुनने से, सेक्सी चित्र देखने से और सेक्सी किताबें पढ़ने से कामेच्छा प्रबल होती है। अति कामी-विकारी स्त्री-पुरुषों के संपर्क से भी कामेच्छा प्रबल होती है। वैसा तामसी भोजन करने से, शराब पीने से कामेच्छा प्रबल होती है।
प्रबल कामवासना का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर तो पड़ता ही है...मन पर भी उसका बुरा प्रभाव पड़ता है। जैसे शरीर अशक्त और रोगी बनता है वैसे मन भी कमजोर बनता है। स्मरणशक्ति कम होती है। गुस्सा बढ़ता है। स्वभाव बिगड़ता है। कोई भी कार्य करने का उत्साह नहीं रहता। सफलता में मन शंकाशील बन जाता है। भय, निराशा और चंचलता से मन भर जाता है।
अति कामासक्ति जैसे पुरुष का नाश करती है, वैसे स्त्री का भी नाश करती है।
सभा में से : आपको क्या कहें? कहते हुए शर्म आती है...आज-कल तो कामासक्ति बढ़ाने के उपाय हम लोग खोजते हैं...भोग-संभोग में हमने सुख माना है...।
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