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प्रवचन-८२
१०५ 'वह हिम्मत अन्धी और अविचारी है | मरने के बजाय जीवन जीने में ज्यादा हिम्मत अपेक्षित होती है। आत्महत्या यानी भागना! जो जीवन से...दुःखों से डर कर आत्महत्या करता है वह भगोड़ा होता है। नाहिम्मत होता है।' दुःख से घबराओ नहीं :
दुःसाहस नहीं करना चाहिए। जीवन है, दुःख तो आयेंगे ही। कुछ दुःख अल्पकालीन होते हैं और कुछ दुःख जीवनपर्यंत रहते हैं। हमें दुःखों के साथ जीवन जीना सीख लेना चाहिए। ठीक है-दुःखों को दूर करने का स्वस्थ मन से प्रयत्न करते रहें परन्तु दुःखों से डरना नहीं चाहिए, घबराना नहीं चाहिए | दुनिया के सामने अपने दुःखों की रामायण पढ़नी नहीं चाहिए। ___ कुछ न कुछ प्रतिकूलताएँ जीवन में प्रायः रहती ही हैं। उन प्रतिकूलताओं के साथ धर्म-अर्थ और काम-यो तीनों पुरुषार्थ की आराधना करते रहना है। मात्र भाग्य के भरोसे जीवन नहीं जीना है। द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव का विचार कर मन को स्वस्थ रखने का है। पुरुषार्थ किये बिना, मात्र भाग्यदुर्भाग्य की बातें करनेवाले कायर होते हैं। ऐसे लोग निराशावादी होते हैं। निराशावादी लोगों का संग भी नहीं करना चाहिए । अन्यथा वे लोग आपको भी निराशावादी बना देंगे। आप निरुत्साही बन जायेंगे। ___ कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति के सामने पूर्ण सरलता से, शान्ति से और एकाग्रता से खड़े रहो। आपको भय के भूत सतायेंगे नहीं। भय और चिन्ता को तो मन के द्वार में प्रवेश ही मत दो।
आप अपने आस-पास के लोगों में से ऐसे लोगों के सामने देखो कि जो निर्भयता से और निश्चितता से प्रतिकूलताओं को हँसते रहते हैं एवं धर्म-अर्थ
और काम-पुरुषार्थ करते रहते हैं। होते हैं दुनिया में ऐसे भी लोग | देखने की दृष्टि चाहिए। ___ सबल हृदय, दुर्भेद्य दुर्भाग्य के किल्ले को भी तोड़ देता है। धरा कांपती हो
और आकाश फट रहा हो - ऐसे समय में भी सबल हृदय निर्भय और निश्चित खड़ा रहता है। यह शक्ति-हिम्मत अपनी ही आत्मा में से मिलती है।
बलाबल का चिन्तन इस प्रकार करके तीनों पुरुषार्थ की आराधना करते रहो - यही मंगल कामना ।
आज बस, इतना ही।
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