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प्रवचन-८२
__९८ है। अयोग्य लड़कों से दोस्ती हो जाय तो भी नुकसान हो सकता है। इसलिए मुझे यहाँ ही कोई दूसरा व्यवसाय ढूँढ़ना होगा।
अब अपनी शक्ति का विचार करना है - ___ 'मैं अभी जो व्यवसाय करता हूँ उसमें सात घंटा काम करता हूँ। अब यदि दूसरा व्यवसाय करूँगा तो और दो-तीन घंटे काम करना पड़ेगा। तो क्या मैं कर सकूँगा? मेरा शरीर काम करेगा? मेरा मनोबल टिकेगा? धर्मपुरुषार्थ में बाधा तो नहीं आयेगी न? काम-पुरुषार्थ में भी बाधा नहीं पहुँचेगी न?' ___ द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव से कैसे विचार करना चाहिए - इसका एक संक्षिप्त रूप बताया। अब एक श्रीमन्त को लेकर दूसरा रूप बताता हूँ।
'मेरे पास दस लाख रुपये हैं | मैं श्रीमन्त हूँ। मेरे दो अच्छे श्रीमन्त मित्र भी हैं। मेरी आय काफी है, व्यय-खर्च थोड़ा है। मैं दूसरा व्यवसाय भी कर सकता हूँ| साहस कर सकता हूँ। कभी दो-तीन लाख का नुकसान हो जाय तो भी बर्दास्त कर सकता हूँ। व्यवसाय करने के लिए यह नगर उपयुक्त है। यहाँ विश्वासपात्र काम करनेवाले भी मिल सकते हैं। सरकार के अधिकारियों की ओर से भी ज्यादा परेशानियाँ नहीं हैं।'
'अभी यह व्यवसाय करने का समय भी अच्छा है। मैं जो माल बनाना चाहता हूँ उस माल की 'मारकिट' भी अच्छी है। इस समय इस धंधे में अच्छी आय हो सकती है।' ___ मैं क्या अपने इस धंधे का ख्याल रख सकूँगा? मेरा शरीर और मेरा मन काम कर सकेगा? मेरे धर्मपुरुषार्थ को क्षति तो नहीं पहुँचेगी न? परिवार को मुझ से असंतोष तो नहीं होगा न? मैं पत्नी की भी राय ले लूँ। यदि घर में क्लेश या असंतोष होनेवाला हो तो मुझे दूसरा व्यवसाय नहीं करना है । पैसा किसलिए कमाना है? यदि धर्म और घर का सुख नहीं मिलता है तो पैसे से क्या? सबके मन प्रसन्न नहीं रहते तो पैसे से क्या! जीवन में उचित धर्मपुरुषार्थ नहीं होता है तो पैसे का क्या करना! जीवन जीने के लिए तो मेरे पास पर्याप्त संपत्ति है। दूसरा व्यवसाय नहीं करूँ, तो भी कोई कमी आनेवाली नहीं है।' ___ अर्थ-पुरुषार्थ को लेकर, द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव से इस प्रकार विचार किया जाना चाहिए। अनुमान भी जरूरी है :
सभा में से : ये तो एक प्रकार के अनुमान ही हुए न? क्या सभी अनुमान सही निकलते हैं?
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