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प्रवचन-८१
८८ महाराजश्री : बात यह नहीं है। धर्मपुरुषार्थ ही करना है और अर्थ-काम की उपेक्षा करते हैं-ऐसे लोगों के लिए मैं बात कर रहा हूँ। व्यवसाय मिलने पर भी, नौकरी मिलने पर भी नहीं करना है...मात्र धर्मक्रिया ही करना है-ऐसे गृहस्थों के लिए अपनी बात चल रही है। नौकरी या व्यवसाय मिलता ही नहीं हो और वह कभी याचना करता है...तो क्षम्य होता है। किसी का दान ग्रहण करता है तो वह अनुचित नहीं है। हालाँकि सत्त्वशील स्त्री-पुरुष तो ऐसी विकट परिस्थिति में भी किसी का लेना पसंद नहीं करते। धर्मपुरुषार्थ भी सहमति से हो : ___ परिवार-पालन के लिए अर्थोपार्जन करना आवश्यक होता है वैसे कामपुरुषार्थ भी आवश्यक बताया है। यदि जीवनपर्यंत ब्रह्मचर्य का पालन करना है तो शादी नहीं करनी चाहिए | शादी कर ली है तो एक-दूसरे की कामेच्छा संतुष्ट होनी चाहिए | मान लो कि पुरुष की इच्छा ब्रह्मचर्य का पालन करने की हुई, तो पत्नी भी खुशी से ब्रह्मचर्य का पालन करने को तैयार हो जाय, तो दोनों ब्रह्मचर्य का आनन्द से पालन कर सकते हैं। वैसे, पत्नी की इच्छा ब्रह्मचर्य का पालन करने की हुई तो उसको पति की अनुमति लेनी चाहिए। पति भी ब्रह्मचर्य का पालन करने को तैयार हो जाय, तो दोनों ब्रह्मचर्य का पालन प्रसन्न चित्त से कर पायेंगे |
यदि, पति ने पत्नी की अनुमति नहीं ली अथवा पत्नी ने पति की अनुमति नहीं ली तो घर में अनाचार का प्रवेश हो सकता है। यदि पति पत्नी की कामेच्छा को पूर्ण नहीं करता है और पत्नी कामेच्छा पर संयम नहीं रख सकती है...तो उसका मन दूसरे पुरुष की ओर जायेगा ही और अवसर मिलने पर वह व्यभिचार का सेवन कर लेगी। उसके जीवन में दुराचार का प्रवेश हो ही जायेगा। इसी तरह यदि पति की अनुमति के बिना पत्नी ब्रह्मचर्य का पालन करेगी, पति की कामेच्छा को पूर्ण नहीं करेगी...तो पति दूसरी स्त्री के पास जायेगा...विषयसेवन करेगा। पुरुष के जीवन में दुराचार का प्रवेश हो जायेगा। इस दृष्टि से ग्रन्थकार ने कहा कि कामपुरुषार्थ की उपेक्षा कर धर्मपुरुषार्थ नहीं करना चाहिए। अन्यथा स्वजन के दुराचार-सेवन में निमित्त बनने का पाप आपको लगेगा।
सभा में से : हमारी भावना ब्रह्मचर्यपालन की हो जाय और पत्नी की इच्छा न हो, तो क्या हमें ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करना चाहिए?
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