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प्रवचन-८१
महाराजश्री : तो फिर आप लोग क्या सुन रहे हो? शादी के बाद आपको केवल अपना ही विचार नहीं करना है, पत्नी का विचार करना आवश्यक होता है। आप ब्रह्मचर्य-धर्म का पालन करोगे और पत्नी दुराचार का सेवन करेगी...तो गृहस्थ जीवन कैसा बन जायेगा? जैसे ब्रह्मचर्यपालन धर्म है वैसे स्वस्त्री से संतोष और परस्त्री का त्याग - वह भी धर्म है न? आप यदि ब्रह्मचर्य का पालन करोगे और पत्नी को स्वपुरुष में संतोष नहीं मिलेगा तो परपुरुष का त्याग करना उसके लिए सरल होगा क्या? कुछ गंभीरता से सोचो। दीर्घदृष्टि से सोचो। ___ हाँ, यदि मैथुन से आप सर्वथा निवृत्त होना चाहते हो तो पत्नी को समझा कर, उसके हृदय में भी मैथुन के प्रति वैराग्य पैदा करो, ब्रह्मचर्य के प्रति अनुराग पैदा करो और दोनों ब्रह्मचर्य का पालन करो । कामपुरुषार्थ की सर्वथा उपेक्षा मत करो।
० उचित समय में अर्थपुरुषार्थ करना चाहिए । ० उचित समय में कामपुरुषार्थ करना चाहिए |
० उचित समय में धर्मपुरुषार्थ करना चाहिए | तीन तरह के आदमी :
यदि गृहस्थ जीवन जीना है तो इस औचित्य का बोध आप लोगों को होना ही चाहिए । इस प्रकार औचित्य बताकर, टीकाकार आचार्यश्री तीन प्रकार के पुरुषों की प्रकृति बताते हैं।
१. तादात्विक पुरुष २. मूलहर पुरुष ३. कदर्य पुरुष
अर्थपुरुषार्थ की दृष्टि से ये तीन प्रकार बताये गये हैं। ये तीन प्रकार के पुरुष, तीनों प्रकार के पुरुषार्थ में निष्फल जाते हैं। ___ तादात्विक : जो मनुष्य प्राप्त संपत्ति का सोचे बिना दुर्व्यय करता है, अनुचित व्यय करता है। अर्थ का नाश होने से काम और धर्म का भी नाश होता है। ___ मूलहर : जो मनुष्य पूर्वजोपार्जित संपत्ति का उपयोग करता रहता है। नया अर्थोपार्जन नहीं करता है उसको 'मूलहर' कहते हैं। ऐसे पुरुष शीघ्र निर्धन होते हैं और काम एवं धर्मपुरुषार्थ से वंचित हो जाते हैं।
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