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प्रवचन-७७
५१ पेथड़ ने कहा : 'गुरुदेव, मुझे २० रुपये का परिग्रह-परिमाण व्रत देने की कृपा करें।' गुरुदेव के मुख पर मुसकान आ गई। उन्होंने मना किया। पेथड़ ने १०० रुपये का परिग्रह-परिमाण माँगा | गुरुदेव ने मना किया | पेथड़ ने एक हजार रुपये की मर्यादा बतायी, तो भी गुरुदेव ने मर्यादा बढ़ाने को कहा। तब पेथड़ ने कहा : 'गुरुदेव, आप ही परिग्रह-परिमाण की मर्यादा बताने की कृपा करें।' ___ गुरुदेव ने पाँच लाख रुपये का परिग्रह-परिमाण रखने को कहा। पेथड़ आश्चर्यचकित हो गया। उसने कहा : 'गुरुदेव, मुझे तो लाख रुपये की गिनती भी नहीं आती...मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि मेरे पास पाँच लाख रुपये हों!'
'पेथड़, तू भाग्यशाली है। भाग्य जब खुलेगा तब तेरी कल्पना नहीं होगी उतनी संपत्ति मिलेगी। परिग्रह-परिमाण का नियम, भाग्यशाली को कुछ विशाल ही रखना चाहिए, ताकि ज्यादा संपत्ति मिलने पर मन चंचल न हो
और व्रतभंग की संभावना न रहे। __ 'पेथड़शाह ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन किया। पाँच लाख रुपये का परिग्रह-परिमाण व्रत लिया। पाँच लाख से ज्यादा संपत्ति मिल जाय तो वह संपत्ति अपने पास नहीं रख सकता। शुभ कार्यों में वह संपत्ति खर्च कर देने की होती है। यह तो कमजोरी है...आसक्ति है :
सभा में से : परिग्रह-परिमाण से ज्यादा संपत्ति मिल जाय तो क्या पत्नी के या पुत्रों के नाम की जा सकती है? ___ महाराजश्री : ऐसा कभी नहीं हो सकता। ऐसा कौन करवाता है, आप जानते हो? परिग्रह की ममता | जब व्रत लिया होता है तब ज्यादा संपत्ति मिलने की आशा न हो, छोटी-सी मर्यादा रखी हो, बाद में भाग्योदय से ज्यादा संपत्ति मिल गई हो... तब मन चंचल बन जाता है। 'इतने सारे रुपये खर्च कर देने के?' हाँ, अच्छे कार्य में खर्च करने का हो, तो भी मन नहीं मानता है। रुपये यों ही तिजोरी में पड़े रहनेवाले हों...फिर भी छूटते नहीं हैं | धन-संपत्ति का मोह छूटना, मामूली बात नहीं है। __ व्रतभंग न हो, इस कल्पना से अज्ञानी जीव, परिग्रह-परिमाण से ज्यादा संपत्ति मिलने पर पत्नी के नाम, पुत्रों के नाम और माता-पिता के नाम कर देते हैं | धन-संपत्ति का मोह ज्यों का त्यों बना रहता है।
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