________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन- ७८
५८
महामंत्री का हृदय, गुरुदेव की कृपादृष्टि से गद्गद् हो गया। वे घर पर आये। उन्होंने अपने मन में निर्णय किया : 'सूत्र श्रवण करते समय जब-जब ‘गौतम' शब्द आयेगा, तब तब मैं एक स्वर्णमुद्रा से श्रुतभक्ति करूँगा ।'
दूसरे दिन स्वर्णमुद्राएँ लेकर, शुद्ध वस्त्र पहनकर, महामंत्री उपाश्रय पहुँचे। गुरुदेव को वंदन कर, जिस मुनिराज के पास सूत्र श्रवण करना था, उनको भी विनयपूर्वक वंदना की । एकाग्र चित्त से, अप्रमत्त आसन से बैठकर उन्होंने भगवती-सूत्र सुनना शुरू किया। जब-जब 'गौतम' शब्द आया, एकएक स्वर्णमुद्रा से श्रुतभक्ति की । ५ दिन में भगवती सूत्र का श्रवण पूर्ण किया। ३६ हजार स्वर्णमुद्रा से महामंत्री ने श्रुतभक्ति की । उन स्वर्णमुद्राओं से उन्होंने भरूच वगैरह नगरों में सात ज्ञानभंडारों का निर्माण किया। प्रेरणा रही होगी आचार्य देव धर्मघोषसूरिजी की । ज्ञानी पुरुषों का समागम, भक्त के हृदय में ज्ञान की ज्योति जलायेगा ही ।
आप लोगों के हृदय में जिनागम श्रवण करने की भावना पैदा होती है क्या? यदि ज्ञानी महापुरुषों का परिचय होगा, तो अवश्य जिनागम सुने होंगे । गृहस्थ, पर साधु से कम नहीं :
अहमदाबाद में एक वकील थे। अच्छी वकालत चलती थी। वे एक दिन एक आचार्य के परिचय में आये । आचार्य जिनागमों के अभ्यासी थे। उन्होंने '४५ आगम विधिपूर्वक सुनने चाहिए, यह बात वकील को समझायी। वकील के मन में उल्लास पैदा हुआ। उन्होंने आगमों का श्रवण करने का संकल्प किया ।
नित्य एकासन का व्रत लेकर, सामायिक में अप्रमत्त भाव से बैठ कर, आगम श्रवण करना शुरू किया । ४५ आगमों का श्रवण किया। बाद में उन्होंने वकालत करना छोड़ दिया । ३५ या ४० वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया ।
मेरा उनसे अच्छा परिचय हो गया । एक दिन उन्होंने अपनी एक 'डायरी' मुझे बतायी। उस डायरी में उन्होंने अपने व्रत - नियमों का विवरण लिखा था । पढ़कर मस्तक झुक गया । जिनशासन में, इस काल में, गृहस्थ जीवन में इतने सारे व्रत-नियमों का पालन करनेवाले धर्मवीर पुरुष हैं।' मन प्रसन्नता से भर गया। उनकी धर्मपत्नी ने कहा : 'ये तो एकासन भी 'ठाम चोविहार' करते हैं ।' यानी एकासन करते समय ही पानी पीते हैं । दूसरे समय में पानी भी नहीं
For Private And Personal Use Only