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प्रवचन-८०
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अति कामुक पुरुष परस्त्रीगामी बनता है, वेश्यागामी बनता है और अनेक बुरे व्यसनों में फँसता है। धर्मविमुखता तो आ ही जाती है, अर्थहानि भी काफी होती है। पारिवारिक जीवन क्लेशमय बन जाता है। पति-पत्नी के बीच संघर्ष, मनमुटाव और मारामारी भी होने लगती है। आज ऐसी दुःखद परिस्थिति व्यापक बनी है। कामुकता ने स्त्री और पुरुष को पशु से भी निम्नस्तर का बना दिया है। __ कामुकता का बहुत ज्यादा बुरा प्रभाव मनुष्य के मन पर पड़ता है। तन तो अशक्त, सामर्थ्यहीन बनता ही है, मन भी चंचल, अस्थिर और दोषयुक्त बन जाता है। ऐसे मनुष्य में न तो धर्मपुरुषार्थ करने का उत्साह रहता है, न अर्थपुरुषार्थ करने का उल्लास रहता है। सच्ची घटना : __उत्तर गुजरात के एक शहर में कुछ वर्ष पूर्व ही मैंने एक घटना सुनी थी। एक पिता ने अपने इकलौते बेटे को पाँच लाख रुपये की संपत्ति दी और पिता का देहावसान हो गया। माता का स्वर्गवास पहले ही हो गया था। लड़का युवक था, शादी भी हो गई थी। पिता के स्वर्गवासी होने के बाद लड़का पाँचों इन्द्रियों के विषयसुख भोगने में हजारों रुपये खर्च करने लगा। कमाने की चिन्ता नहीं थी। पिता ने पाँच लाख रुपये दिये थे न? __वह घूमने के लिए, मौजमजा करने के लिए बार-बार बंबई जाने लगा। वैभवशाली होटल में ठहरने लगा। वेश्यागामी बना। शराबी बना। पानी की तरह पैसे बहाने लगा। उसकी जन्मभूमि में उसकी जो फैक्टरी चलती थी, वह बन्द हो गई। नुकसान भी बहुत हुआ। लेकिन उस युवक ने ध्यान नहीं दिया। उसकी पत्नी दु:खी-दु:खी हो गई। चूँकि जब 'कैश' रुपये पूरे हो गये, युवक ने अपनी पत्नी के गहने छीन लिये...| अलंकारों को बेचकर वह अपनी कामुकता को संतुष्ट करने लगा। फैक्टरी भी बिक गई।
रहने के घर के अलावा उसकी समग्र स्थावर-जंगम संपत्ति नष्ट हो गई। दरिद्रता ने उसको घेर लिया। उसका शरीर भी दुर्बल हो गया। मानसिक स्थिति बड़ी दयनीय हो गई। धर्म तो उसके जीवन में था ही नहीं। स्नेहीस्वजन उसके सामने भी देखना नहीं चाहते थे।
कोई पुण्य का...थोड़ा-सा 'बेलेन्स' होगा उसके भाग्य में...। उसके पिता के एक मित्र, जो दूर देश में रहते थे, वे उस शहर में आये, उन्होंने अपने मित्र
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