________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-७६ ___'मैंने ज्ञानीपुरुषों का मार्गदर्शन नहीं लिया, इसलिए मैं आफत में फँसा ।' ऐसा सोचेगा तो वह ज्ञानीपुरुषों के सम्पर्क में आने का विचार करेगा। कभी गाँव में गुरुजनों का संयोग मिलेगा तो वह उनके पास पहुँच जायेगा और अपनी समस्याओं का समाधान पाने का प्रयत्न करेगा।
परन्तु, यदि पूर्वजन्मों के कर्मों का ही दोष देखता रहेगा तो वह अपनी भूलों को नजरअंदाज ही करता रहेगा | भूलों को सुधारने की बात ही कहाँ? भूलों की परंपरा रुकेगी ही नहीं। ___ हाँ, यदि कर्म-सिद्धान्त की कुछ गहराई में जाकर सोचें, तो आत्मनिरीक्षण को अवकाश मिल सकता है। 'मैंने कैसे कर्म बाँधे होंगे...कि आज इतने सारे दुःख आये? क्या क्या करने से ऐसे पापकर्म बंधे होंगे? अब मैं मन-वचनकाया से ऐसे आचरण नहीं करूँगा...।'
फिर वह जानने का प्रयत्न करेगा कि क्या क्या सोचने से, क्या बोलने से और कैसे कैसे काम करने से कौन-कौन-से कर्म बंधते हैं। उसके जीवनव्यवहार में अच्छा परिवर्तन आयेगा | जीवनप्रवाह स्वच्छ, निर्मल और समत्वयुक्त बनेगा। आदर्श गृहस्थ बनकर जीवन जी सकेगा।
अति परिचय नहीं करने का उपदेश, यदि ऊपर-ऊपर से सोचोगे, तो नहीं अँचेगा। दीर्घदृष्टि से...परिणाम की दृष्टि से सोचोगे, तो ही अँचेगा। एक पुरानी कहानी :
एक राजकुमारी ने संसार का त्याग किया और वह साध्वीजी बन गई। धर्मशास्त्र में यह कहानी पढ़ने को मिलती है। साध्वीजी तो बन गई, परन्तु एक गृहस्थ महिला, कि जो नगरवेष्ठि की पत्नी थी, उससे परिचय हुआ। 'ये साध्वीजी राजकुमारी थी...राजगृह छोड़कर साध्वीजी बनी है...।' लोगों को साध्वीजी के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है। गृहस्थ...कि जो गुणरागी होते हैं, वे तो आकर्षित होकर आयेंगे, परन्तु साधु-साध्वी को उनके प्रति आकर्षित नहीं होने का है। अपने भक्त बनाने का मोह साधु-साध्वी के जीवन में विघातक बन सकता है।
नगरश्रेष्ठि की पत्नी के साथ साध्वीजी का परिचय घनिष्ट हो गया। हालाँकि, साध्वीजी मानती होगी कि 'यह संबंध तो धार्मिक है...इसलिए वर्ण्य नहीं है।' वह भिक्षा लेने नगरश्रेष्ठि के घर जाती है तो वहाँ देर तक खड़ी रहती है और सेठानी से बातें करती रहती हैं | सेठानी साध्वीजी के पास आती
For Private And Personal Use Only