________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५
प्रवचन-७६
वैसे, जो श्रावक उपाश्रय में ज्यादा समय बिताते हैं, कि जिस उपाश्रय में साधुपुरुष रहे हुए होते हैं, उन श्रावकों के हृदय में साधुपुरुषों के प्रति सद्भाव नहीं रहता है। वे लोग साधुपुरुषों की कभी कभी अवज्ञा अनादर कर ही देते हैं। वे लोग बैठे बैठे करते हैं सामायिक, फेरते हैं माला, परन्तु देखते रहते हैं साधुओं के छिद्र । देखते रहते हैं साधुओं की चर्या | सुनते रहते हैं साधुओं की बातें... बाद में, दो-चार मिलकर करते रहते हैं साधुनिन्दा। साधु को भी अति परिचय से बचना है : ___ साधु भी जो गृहस्थों का अति परिचय रखते हैं, उनका अनादर होता ही है। अति परिचय से अति विश्वास होता है। अति विश्वास कभी धोखा देता ही है। मैंने कुछ वर्ष पहले सुना था कि राजस्थान में एक आचार्य (जो स्वयं आचार्य बने हुए थे) ने किसी कार्य के लिए (मंदिर या धर्मशाला) ७५ हजार रुपयों का चन्दा इकट्ठा करवाया और अपने अति परिचित एक गृहस्थ को ७५ हजार सौंप दिये, क्योंकि वह ब्याज ज्यादा देता था। दो साल बाद, जब उस आचार्य ने रुपये के लिए कहलवाया... तो उस गृहस्थ ने कहा : ‘रुपये कौनसे और बात कौन-सी? मेरे पास एक रुपया भी नहीं है।'
यह बात सुनकर आचार्य को 'हार्ट-एटेक' हो गया । बीमार हो गये। अति परिचय में मनुष्य विश्वास तो कर ही लेता है...। अयोग्य-अपात्र व्यक्ति उस विश्वास का गैरलाभ उठाते ही है। हालाँकि, साधु-साध्वी को तो किसी से भी अति परिचय रखने का नहीं है। जो रखते हैं वे कभी न कभी चक्कर में आ ही जाते हैं। फिर वे दोष निकालते हैं अपने पूर्वजन्म के कर्मों का | वर्तमान जीवन की गलती वे नहीं समझते हैं। 'मैंने अति परिचय किया इसलिए मैं संकट में फँसा', ऐसा नहीं समझते हैं।
कर्म-सिद्धान्त को पूरा नहीं समझनेवाले, बात-बात में 'यह तो मेरे पुण्यकर्म का उदय है, यह तो मेरे पापकर्म का उदय है...' ऐसी बातें करते रहते हैं। इस आदत ने आत्मनिरीक्षण को और आत्म-सुधार को भुला दिया है। विशेष कर अपने जैन संघ में आत्मनिरीक्षण की बात ही भुला दी गई है। अपना आत्मनिरीक्षण खुद करो :
'मैंने जिनाज्ञा का पालन नहीं किया, मैंने भूल की, इसलिए यह संकट आया,' यदि मनुष्य ऐसा सोचेगा तो उसके मन में जिनाज्ञा का पालन करने की भावना जगेगी। 'जिनाज्ञा क्या है, वह समझने की इच्छा पैदा होगी।
For Private And Personal Use Only