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[३४] हैं और एकऋतुमास बढताहै, तब सब मिलकर १८३०दिनौका एक युग पूराहोताहै, और एक युगके सभी दिनोंको अभिवर्द्धित महीनेके हिसाबसे गिने तब तो कुल ५७ अभिवार्द्धत महिनोलेही १ युग पूरा होता है । इसलिये शास्त्रोके नियमसे तो अधिकचंद्रमासके या अधिक नक्षत्रमासके किसीभी महीनेके १ दिनकोभी गिनतीमें निषेध करनेवाले, तीर्थकर गणधरादि महाराजोंके कथनके प्रमाणका भंग करनेवाले होनेसे आशातनाके भागी बनते हैं। क्योंकी चंद्रादि अ. धिक महीनों के दिनोंकी गिनती सहितही पांच वर्षोंके १ युगके १८३० दिनोंकाप्रमाण पूरा होसकताहै, अन्यथा पूरा नहीं होसकता. ___ और तिथि, वार, मास, पक्षादि व्यवहार चंद्रमासके हिसाबसे चंद्रसंवत्सरको अपेक्षाले मानतेहैं । और प्राणियोंके कर्म बंधनकी स्थिति, व आयुप्रमाणकी स्थिति सूर्यमासके हिसाबसे सूर्य संवत्सरकी अपेक्षासे मानते हैं, इसलिये सूर्यसंवत्सरके हिसाबसेही मास, अयन, वर्ष, युग, पूर्व, पूर्वीग, पल्योपम, सागरोपमादिकके काल प्रमाणसे ४ गतियोंके सबीजीवोंके आयुकाप्रमाण, व आंठाही प्रका. रके कर्मों की जघन्य, मध्यम, उत्कृष्टस्थितिके धंधका प्रमाण, और उ. सर्पिणी-अवसर्पिणीले कालचक्रका प्रमाण, यहसबबाते सूर्यसंवत्सरकी अपेक्षासे मानते हैं. इसका अधिकार लोकप्रकाशादि शास्त्र में प्रकटहीहै । और वार्षिकक्षामणे करनेका तो चंद्रमासके हिसाबले चंद्रसंवत्सरकी अपेक्षासेमानते हैं, मगर चंद्रसंवत्सरके ३५४ दिन होते हैं, तो भी व्यवहारिक रूढीसे ३६० दिन कहनेमें आते हैं। तैसेही महीना बढे तब १३ महीनोके ३९० दिन कहने में आते हैं, मगर कितनेक ऋतु संवत्सरकी अपेक्षासे ३६० दिनोंके वार्षिक क्षामणे करनेका कहते हैं, परंतु ऋतुसंवत्सर पूरे ३६० दिनोंका होता है, उसमें कोई भी तिथि क्षय होनेका अभाव हैं, व तीसरे वर्ष महीना बढनेकाभी अभाव है, और चंद्र संवत्सर ३५४ दिनोंका होनेसे संवत्सरीके रोज चंद्र संवत्सर पूरा होसकता है, मगर ऋतुसंवत्सर पूरा नहीं होसकता । और तिथि, वार, मास, पक्ष, व. र्षका व्यवहारमी ऋतुसंवत्सरकी अपेक्षाले नहीं चलता, किंतु चंद्र संवत्सर की अपेक्षासे चलता है, और ऋतु संवत्सरके ३६० दिनतो संवत्सरी पर्व हुए बाद ६ रोजसे दशमीको पूरे होते हैं, और संवस्सरीपर्वतो ४ या ५ को करने में आता है, इसलिये वार्षिक क्षामणे ऋतुसंवत्सरकी अपेक्षाले नहीं, किंतु चंद्रसंवत्सरकी अपेक्षासे कर
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