________________
[३२]
महीनेमेभी किये जाते हैं । और दूज-पंचमी-अष्टमी-चतुर्दशी वगैरहमें उपवास करनेका, ब्रह्मचर्य पालनेका, रात्रिभोजन त्याग करनेका इत्यादि, व्रत, नियम, पञ्चास्त्राण तो दोनों महीनों में दो दो वारकरनेमें आते हैं । और पर्युषणपर्व तो मास बढे तो भी ५० दिनकी जगह ५१ वें दिनभी कभी नहीं होसकते. इसलिये दिन प्रतिबद्ध पर्युषणापर्वके साथ, मास प्रतिबद्ध होली, दीवाली वगैरहका विषय लाना सो सर्वथा अनुचित है।
___ और महीना बढनेके अभावमें ओलियोंका पर्व छठे महीने करनेका शास्त्रों में कहाहै, मगर महीना बढे तबतो प्रत्यक्ष प्रमाणसे
और शास्त्रीय हिसाबसे भी सातवे (७) महीने ओलियोकापर्व होताहै, तो भी व्यवहारसे छठे महीने आंबीलकी ओलिये करनेका कहाजाताहैं । जैसे-श्रीआदीश्वरभ गवानने, चैत्र वदी ८ [गुजरातकी अपेक्षा फागण वदी ८ ] को दीक्षा अंगीकार की थी, और दीक्षाके दिनसे तपस्याका पारणा दूसरे वर्ष वैशाख शुदी ३ को हुआथा, तो भी व्यवहारसे सबी शास्त्रोंमें वर्षी तपका पारणा लिखा है. और ऐसेही वर्षांतपका पारणा सब कोई जैनीमात्र कहते हैं, मगर दिनोंकी गिनतीसे तो १३ महीनोंके ऊपर १० दिन होनेसे ४०० दिन पारणाके होते हैं, जिसमेभी कदाचित उस घर्षमें बीचमें अधिक महीना आजावे तो १४ महीनोंके ऊपर १० दिन होनेसे ४३० दिने पारणा होता है, तो भी व्ययहारसे वर्षी तपही कहा जाता है, और यह बात अभी वर्तमानमेंभी वर्षी तप करने बालोंके अनुभवमें प्रत्यक्षही आतीहै, इसलिये ४३० दिने पारणा करते हैं, तोभी व्यवहारसे वर्षांतप कहते हैं। और व्यवहारसे वर्षके ३६० दिन होते हैं मगर निश्चयमें तो ४३० दिने पारणा करने का बनताहै तो भी किसी तरहका विसंवाद या दोष नहीं आसकता. इसी तरहसे व्यवहारसे ओली ६ महीने, चौमासा ४ महीने व वा. र्षिक पर्व १२ महीने करनेका कहते हैं, मगर अधिक महीना भावे, तब निश्चयमें तो, ओली ७ महीने, चौमासा ५ महीने, व पा. र्षिक पर्व १३ महीने होता है तोभी तस्व दृष्ठिसे कोई तरका वि. संवाद या दोष नहीं है, मगर पर्युषण पर्वतो अधिक महीना होवे तब भी आषाढ चौमासीसे वर्षाऋतुके ५० वे दिनकी जगह ५१ वै दिनभी कभी नहीं होसकते. इसलिये मास प्रतिबद्ध होली, दीवा ली, भोली वगैरहका दृष्टांत दिन प्रतिबद्ध पर्युषणामें बतलाना वि.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com