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[३०] विशेष तवा जन स्वयं विचार सकते हैं। और इसका विशेष खुलासा इसी ग्रंथके पृष्ठ ३६२ से ३८२ तक छप गया है, उसके देखनेसे सब निर्णय हो जावेगा। ३१- पांच महीनोंके चौमासी क्षामणो संबंधी खुलासा.
पहिले पौष महीना बढताथा तबभी फाल्गुन चौमासा पांच महीनोंका होताथा, व आषाढ महीना बढताथा तबभी आषाढ चौमासा पांच महीनोंका होताथा, तैसेही अभी वर्तमानमें लौकिक श्रावणादि बढतेहैं तबभी कार्तिक चौमासा पांच महीनों का होता है। यद्यपि सामान्य व्यवहारसे चौमासा ४ महीनोका कहा जाता है मगर अधिक महीना होवे तब विशेष व्यवहारसे निश्चयमें पांच महीनोके १० पाक्षिक प्रतिक्रमण सबी गच्छवालोको प्रत्यक्षमे क. रनेमें आते हैं । और जितने मासपक्षोंका प्रायश्चित ( दोष )लगा होवे, उतनेही मासपक्षोंकी आलोचना क्षामणा करना स्वयंसिद्धही है । और मास बढनेसे पांच महीनों के दशपक्ष होनेपरभी उसमें ४ महीनोंके ८ पक्षोके क्षामणा करना और दो पक्ष छोड देना सर्वथा अनुचित है। इसलिये ऊपर मुजब ३०वे नंबरके १३ मासी संवच्छरीक्षामणा संबंधी लेख मुजबही यथा अवसर पांच महीनों के दशपक्षोंके क्षामणे करने शास्त्रानुसार युक्तियुक्त होनेसे कोई भी निषेध नहीं करसकता, इसका भी विशेष खुलासा इस ग्रंथके पृष्ठ ३६२ से ३८२ तकके क्षामणों संबंधी लेख में छप गया है वहांसे जान लेना। ३२- १५ दिनोंके पाक्षिक क्षामणो संबंधी खुलासा ।
जैन ज्योतिषके शास्त्रानुसार तो जिस पक्षमें तिथिका क्षय होवे, वो पक्ष १४ दिनोका होता है । और जिल पक्षमें तिथिका क्षय न होवे,वो पक्ष १५ दिनोंका होता है। मगर लौकिक. टिप्पणामें तो अभी हरेक तिथियोंकी हानी और वृद्धि होती है, इसलिये कभी १३ दिनोंकाभी पक्षहोताहै, कभी १४ दिनोंकाभी पक्ष होताहै, कभी १५ दिनोकाभी पक्ष होताहै और कभी १६ दि. नोंकाभी पक्ष होता है। मगर व्यवहारसे १५ दिनोका पक्ष कहा जाता है इसलिये व्यवहारसे पाक्षिक प्रतिक्रमण १५ दिनोके क्षामणे करनेमें आतेहैं. मगर निश्चयमै तो जितने रोजके कर्मबंधन हुए
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