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अभेद प्रणिधान ध्येय के साथ अभेद स्थापित कर जप अथवा ध्यान करना अभेद प्रणिधान का प्रयोग है। ध्यान करने वाला ध्येय के वाचक पद का ज्ञानकेन्द्र पर ध्यान करे। फिर वाचक के अर्थ के साथ एकात्मकता स्थापित करे। वह मैं ही हूं ऐसा अनुभव करे। इस अभ्यास से अभेद प्रणिधान सिद्ध हो जाता है। ___ अभेद प्रणिधान की सिद्धि के लिए निरंतर और दीर्घकाल तक अभ्यास करना जरूरी है।
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३० मई
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२०००
भीतर
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