Book Title: Bhitar ki Aur
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 344
________________ R हठळमठ - क्रोध-नियन्त्रण-[१) भावना, अनुप्रेक्षा (स्व-सम्मोहन) द्वारा आवेग को नियमित किया जा सकता है। उसका विधिवत् प्रयोग करने से व्यक्ति सफल होता है। क्रोध-नियंत्रण के लिए अनुचिंतन करें १. क्रोध-नियंत्रण कायोत्सर्ग १० मिनिट। अनुचितन क्रोध एक असाधारण आवेग है। क्रोध वही करता है, जो भावनात्मक दृष्टि से परिपक्व नहीं है। क्रोध शक्ति को क्षीण करता है। मैं अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर सकता हूं। मैं अपने आपको भावित करता रहूंगा कि मुझे कोई उत्तेजित नहीं कर सकता। मैं अपने विवेक को काम में लूगा, आवेग के अनुसार कार्य नहीं करूंगा। मुझे क्रोध आ रहा है, इसका पता चलता है। मैं अपने विचारों को बदल दूंगा। क्रोध पैदा होते ही मैं कायोत्सर्ग में चला जाऊंगा। दीर्घ श्वास और श्वास-संयम का प्रयोग शुरू कर दूंगा। २२ नवम्बर - २००० ____ भीतर की ओर)___ (भीतर की ओर) Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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