Book Title: Bhitar ki Aur
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 364
________________ नाड़ी शोधन योगाभ्यास से पूर्व नाड़ी शोधन जरूरी है उसका महत्त्वपूर्ण प्रयोग है नाड़ी शोधन १. बाएं से श्वास, अन्तःश्वास संयम। नाभि पर चन्द्र का ध्यान। बाएं से ही रेचन । बाध्य श्वास संयम। तीन आवृत्तियां करें। इसी प्रकार दाएं से पूरक, श्वास-संयम, रेचक, श्वास-संयम। नाभि पर सूर्य का ध्यान। तीन आवृत्तियां करें। __ दोनों नथुनों से श्वास । अंतःश्वास संयम। मुंह से रेचन। बास्य श्वास-संयम। एक आवृत्ति करें। इस प्रकार यह एक आवृत्ति होती है। ऐसी तीन आवृत्तियां करें। तीन मास तक एक आवृत्ति करें। प्रतिमास एक-एक आवृत्ति की वृद्धि करें। दस तक ले जाएं। २. तीन मास से छह मास तक १० मिनिट निरन्तर समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का अभ्यास करें। फलतः नाड़ीशुद्धि होगी। - १२ दिसम्बर २००० भीतर की ओर mom Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386