Book Title: Bhitar ki Aur
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 381
________________ तरुलद006 मैत्री शत्रुता का भाव व्यक्ति में तनाव पैदा करता है, उससे निषेधात्मक भाव प्रबल हो जाता है। चेतना की विकृति का वह बहुत बड़ा कारण है। उससे बचना अपने हित में है । अभ्यास के द्वारा इस भाव का विलय किया जा सकता है । १. मैत्री का विकास हो रहा है-इस विचार पर एकाग्रता का अभ्यास करें। २. संकल्प का प्रयोग करें— मैं मैत्री का विकास करूंगा। ३. मैत्री का मानसिक चित्र बनाएं | ४. पुनः संकल्प करें— शत्रुता का भाव समाप्त हो रहा है । मैत्री का भाव पुष्ट हो रहा है। २६ दिसम्बर २००० भीतर की ओर ३८० Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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