________________
फ्र
फ्र
लठठवठठल
अमृत प्लावन
यह मंत्रसाधना का एक विशिष्ट प्रयोग है। मंत्र वर्णों का न्यास करने के बाद चिन्तन करें कि मस्तिष्क से चार अंगुल ऊपर के भाग से अमृत का स्राव हो रहा है । अमृत की ऊर्मियां शरीर के हर अवयव को आप्लावित कर रही हैं। शरीर अमृतमय हो रहा है। विजातीय तत्त्व बाहर निकल रहे हैं। आनन्द का वातावरण बन रहा है ।
मंत्र के इष्ट का अवतरण हो रहा है। उसकी शक्ति शरीर में संक्रान्त हो रही है। इसकी साधना के लिए चार बजे से सूर्योदय तक का समय अधिक उपयुक्त है।
२७ नवम्बर
२०००
भीतर की ओर
३४८
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org