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सवल नहीं है अकेला रहना अकेला रहना बहुत कठिन कार्य है। चेतना के स्तर पर जीने वाला व्यक्ति अकेला रह सकता है। उसके लिए साधना बहूत जरूरी है।
एक शिशु जन्म लेता है तब वह परिवार से घिरा होता है। उसके सामने कोई एक नहीं होता, समुदाय होता है। वह उसी क्षण से समुदाय के जीवन में ढलना शुरू हो जाता है। अकेला ऽरता है, अकेले में उसका मन नहीं लगता। इन स्थितियों का निर्माण शैशवकाल से ही हो जाता है। फिर अकेले रहना सरल कैसे हो सकता है?
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-radarrawnawaR
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२४ अगस्त २०००
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(भीतर की ओर)
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