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अन्तर्यात्रा
ध्यान की मुद्रा में बैठकर दीर्घ श्वास का प्रयोग और उसके साथ श्वास- संयम (कुंभक) का प्रयोग किया जाए । चित्त की यात्रा पृष्ठरज्जु के निचले सिरे से मस्तिष्क के चोटी के भाग तक की जाए। इससे सुषुम्ना में चित्त का प्रवेश होता है। इस अवस्था में उसकी बहिर्मुखता समाप्त होती है । उसका अन्तर्मुखता में प्रवेश हो जाता है। बार-बार उसका प्रयोग करने पर विद्युत के समान दीर्घाकार तेज दिखाई देने लगता है।
०३ अक्टूबर
२०००
भीतर की ओर
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