Book Title: Bhitar ki Aur
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 309
________________ चळवळ arre विचार प्रेक्षा विचार मन की सतत प्रवाही क्रिया है। वह रुकती नहीं है। ध्यानकाल में उसे रोकने का अभ्यास किया जाता है। फिर भी उसे रोकना सहज नहीं होता। प्रयोग के द्वारा उसकी गति को मंद किया जा सकता है और समाप्त भी किया जा सकता है। १. अपने ज्ञाता-द्रष्टा रूप का अनुभव करें, जो स्मृति, कल्पना और विचार से भिन्न है। २. चित्त को द्रष्टा के रूप में सिर पर केन्द्रित करें। विचार तरंग उठे, उसे देखते जाएं, विचारों को रोकने का प्रयत्न न करें। ३. विचारों को देखें, विचारों के उद्गम स्रोत को देखें। ४. विचारों को पढ़ें, विचारों के साथ बहें नहीं, उन्हें देखें। ५. विचार-प्रवाह शांत हो, तब शांत रहें। - १८ अक्टूबर २००० (भीतर की ओर - Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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