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संकल्पशक्ति का विकास-(a)
संकल्पशक्ति का संबंध परिणमन के सिद्धान्त के साथ है। परिणमन स्वाभाविक भी होता है और प्रयत्नजन्य भी होता है। हम जिस कार्य के लिए संकल्प का प्रयोग करते हैं, उस कार्य में हमारा परिणमन शुरू हो जाता है और वह निश्चित अवधि के बाद एक आकार ले लेता है। उसका अभ्यास निम्नलिखित विधि से किया जा सकता है१. वज्रासन की मुद्रा में बैठे। २. पृष्ठरज्जु सीधा रहे। ३. दीर्घश्वासपूर्वक पूरक करें। ४. श्वास-संयम के समय स्वतः सूचना का प्रयोग करे--प्राण का प्रवाह दर्शनकेन्द्र की ओर जा रहा है। ५. वैसा ही मानसिक चिन बनाएं। तीन मिनिट तक इसका प्रयोग करें। ६. फिर पांच मिनिट तक केवल दीर्घश्वास का प्रयोग करें। ७. भावना करें- मेरा आत्मबल बढ़ रहा है। मेरी संकल्प शक्ति का विकास हो रहा है। ८. रेचन के साथ भावना करें-मानसिक दुर्बलता निःश्वास के साथ बाहर निकल रही है।
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११ नवम्बर
२०००
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भीतर की ओर)
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