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ब्रह्मचर्य-(५) ऊर्जा का पूरे शरीर में संतुलन होता है तब वृत्तियां भी संतुलित रहती हैं। किसी एक स्थान में ऊर्जा का अधिक संचय हो जाने पर उस स्थान की वृत्ति में उभार आ जाता है। काम-केन्द्र पर संचित ऊर्जा का संतुलन बनाए रखने के लिए यह प्रयोग किया जा सकता है।
१. पद्मासन या वज्रासन में बैठे।। २. समवृत्ति श्वास का प्रयोग करें।
३. श्वास का रेचन करते समय जननेन्द्रिय को ऊपर की ओर आकर्षित करें।
४. संकल्प करें-ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण हो रहा है।
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१८ नवम्बर
२०००
(भीतर की ओर
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