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प्रतिसलीनता (प्रत्याहार)-(१)
इन्द्रियों की प्रवृत्ति विषय की ओर होती है। विषय बास्य जगत में हैं। विषय की ओर होने वाली प्रवृत्ति चंचलता पैदा करती है। उसका दिशा परिवर्तन (इन्द्रियों की प्रवृत्ति को बाहर से भीतर की ओर ले जाना) आवश्यक है।
१. स्पर्शन प्रतिसंलीनता। सिद्धासन, सर्वेन्द्रिय संयम मुद्रा। जननेन्द्रिय का बार-बार आकुंचन। खेचरी मुद्रा द्वारा अपान वायु को ऊर्ध्व की ओर आकर्षित करें।
२. रसना प्रतिसंलीनता खेचरी मुद्रा करें। ३. घाण प्रतिसंलीनता
श्वास-संयम सहित अनुलोम-विलोम प्राणायाम तथा उसमें इष्ट-मंत्र का मानसिक जप करें।
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२६ अक्टूबर
२०००
(भीतर की ओर)
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