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मनुष्य अकेला कैसे ? मैं अकेला हू—यह स्थूल कल्पना है। मनुष्य का मस्तिष्क अनेक विचारों, कल्पनाओं, योजनाओ का उद्गम स्रोत है, फिर वह अकेला कैसे हो सकता है ?
अकेला वही हो सकता है जो अप्रभावित है। मनुष्य सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित है, फिर वह अकेला कैसे हो सकता है ? ।
मनुष्य भूमण्डल की असंख्य तरंगों, आकाश के असंख्य विकिरणों से प्रभावित है, फिर वह अकेला कैसे हो सकता है ?
वास्तव में अकेला वही हो सकता है जो अप्रभावित रहने के कवच का निर्माण करना जानता है।
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२३ अगस्त
२०००
भीतर की ओर
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